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अमेरिका में PM मोदी को न्योते पर मचा बवाल, जानें पूरा मामला

अमेरिका में लोकतंत्र पर अपनी तरह का पहला वैश्विक सम्मेलन हो रहा है। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी समेत दुनिया भर के दिग्गज नेता हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने नरेंद्र मोदी सहित कई नेताओं को बुलाने पर आपत्ति जताई है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन समिट फॉर डेमोक्रेसी के लिए नाम से आयोजित सम्मेलन में भाषण देने के लिए तैयारी कर रहे हैं। सौ से ज्यादा देशों का यह अपनी तरह का पहला सम्मेलन है जिसमें दुनियाभर में लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के हनन पर बात होनी है। लेकिन बहुत से मानवाधिकार कार्यकर्ता इस सम्मेलन को इसलिए शक की निगाह से देख रहे हैं कि कुछ ऐसे नेताओं को इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए बुलाया गया है जिनका अपना रिकॉर्ड संदिग्ध है।

मानवाधिकारों और लोकतंत्र के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था फ्रीडम हाउस में वाइस प्रेजीडेंट ऐनी बोयाजियान कहती हैं कि बिना लोकतांत्रिक प्रतिबद्धताओं को इस तरह का सम्मेलन अर्थहीन है। उन्होंने कहा, “अगर इस सम्मेलन को एक और बैठक से ज्यादा कुछ होना है तो फिर अमेरिका समेत सारे प्रतिभागियों को आने वाले साल में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर अर्थपूर्ण प्रतिबद्धताएं निभानी होंगी। अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि यह सम्मेलन लोकतंत्र पर एक लंबी चर्चा की शुरुआत मात्र है और आगामी सम्मेलनों में शामिल होना चाहने वाले देशों को सुधारों के वादे निभाने होंगे। चुन चुन कर बुलाए गए मेहमान यह सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस दावे की भी परीक्षा है जो उन्होंने विदेश नीति के पहले ऐलान के वक्त किए थे। इसी साल फरवरी में दिए इस भाषण में बाइडेन ने कहा था कि अमेरिका वैश्विक नेतृत्व की अपनी भूमिका में लौटेगा और चीन और रूस जैसी ताकतों को जवाब देगा।

अमेरिकी पत्रिका पोलिटिको ने इस सम्मेलन में आने वाले संभावित मेहमानों की एक सूची छापी है। इसमें फ्रांस और स्वीडन जैसे परिपक्व लोकतांत्रिक देश होंगे तो फिलीपींस और पोलैंड भी होंगे जिनके बारे में मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि वहां लोकतंत्र खतरे में है। एशिया से अमेरिका के सहयोगी देश जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश आमंत्रित हैं लेकिन थाइलैंड और वियतनाम को नहीं बुलाया गया है। मध्य पूर्व से बहुत कम मेहमान हैं। मसलन, इजरायल और इराक तो सूची में हैं लेकिन अमेरिका के साथी माने जाने वाले मिस्र और नाटो सदस्य तुर्की का नाम गायब है।

वैसे, मानवाधिकार संगठन इस बात को लेकर बाइडेन की तारीफ कर रहे हैं लोकतांत्रिक अधिकारों को उन्होंने अपनी विदेश नीति की प्राथमिकता बनाया है। खासतौर पर उनके पूर्ववर्ती डॉनल्ड ट्रंप की इस मामले में कम दिलचस्पी और विवादित बयानों के बाद बाइडेन का यह कदम अहमियत रखता है। ट्रंप ने तो मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी और रूस के व्लादीमीर पुतिन की जमकर तारीफ की थी। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस बात को लेकर संदेह है कि खराब रिकॉर्ड वाले नेताओं को बुलाए जाने से इस सम्मेलन की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। लेकिन साथ ही यह बात भी कही जा रही है कि यह सम्मलेन चीन और अन्य प्रतिद्वन्द्वियों के खिलाफ एक नया मोर्चा है। ‘प्रोजेक्ट ऑन मिडल ईस्ट डेमोक्रेसी’ की शोध निदेशक एमी हॉथोर्न कहती हैं, “साफ है कि चीन को टक्कर देने की रणनीति के चलते ही भारत और फिलीपींस जैसे उसके पड़ोसियों को आमंत्रित किया गया है जिनके यहां लोकतांत्रिक मूल्य लगातार क्षरण की ओर हैं। ऐसा ही इराक को लेकर भी कहा जा सकता है जहां का लोकतंत्र घालमेल का शिकार है लेकिन जो ईरान का पड़ोसी है। फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रीगो डुटेर्टे कह चुके हैं कि वह “मानवाधिकारों की परवाह नहीं करते।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में मानवाधिकार संगठन फ्रीडम हाउस का कहना है कि वह भारत को निरंकुशता की ओर ले जा रहे हैं। दोनों नेताओं को सम्मेलन में बुलाया गया है। सम्मेलन की योजना में शामिल रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दुनिया के अलग- अलग हिस्सों से ऐसे नेताओं को बुलाया गया है जिनके लोकतंत्र को लेकर अलग-अलग तरह के अनुभव रहे हैं। इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह किसी को समर्थन नहीं है। आप लोकतंत्र हैं, आप नहीं हैं। इस प्रक्रिया से हम नहीं गुजरे हैं। उन्होंने कहा कि हमें इस आधार पर चुनाव करना था कि क्षेत्रीय विविधता हो।