सुप्रीम कोर्ट ने यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे एक छात्र से सहानुभूति दिखाते हुए उसके पिता पर लगे जुर्माने की राशि घटाकर 10 लाख से 2 लाख रुपए कर दी. पिता पर आरोप था कि उसने फर्जी दस्तावेज लगाकर अपने बेटे के लिए योग्यता प्रमाण पत्र हासिल किया था. सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ के सामने इस मामले की सुनवाई हो रही थी. इस मामले में 08 फरवरी को हुई सुनवाई में छात्र के पिता पर फर्जीवाड़ा करने के आरोप में 10 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया था.
जब सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि बेटे को यूक्रेन में मेडिकल एजुकेशन में एडमिशन दिलाने के लिए प्रमाणपत्र बनवाने में पिता ने अपनी कुछ निजी जानकारियां छिपाईं, तो अदालत का रुख थोड़ा नरम हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माने की राशि 10 लाख से घटाकर 2 लाख कर दी और अपनी टिप्पणी में कहा कि भारत के प्राइवेट संस्थानों की तुलना में यूक्रेन में कम फीस होने के कारण मेडिकल की पढ़ाई के लिए भारतीय छात्र यूक्रेन जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
नेशनल मेडिकल कमीशन के वकील को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “देखिए अभी यूक्रेन में करीब 20 हजार छात्र पढ़ाई के लिए गए हुए हैं. वे युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसे हुए हैं. लड़ाई कब तक चलेगी इसका कोई पता नहीं. ये भारतीय छात्र वहां जाकर इसलिए पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि वहां मेडिकल शिक्षा की फीस भारत में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के मुकाबले काफी कम है. अभी युद्ध में फंसे छात्रों और उनके अभिभावकों की दशा को देखते हुए हमने अपने पुराने आदेश में सुधार करते हुए जुर्माना घटाने का फैसला किया है.”
क्यों लगाया गया था जुर्माना?
नेशनल मेडिकल कमीशन के मुताबिक, छात्र ने 2014 में हायर सेकेंड्री पास की थी. फिर मेडिकल में अंडर ग्रेजुएट यानी UG के लिए यूक्रेन के संस्थान में अप्लाई किया और दाखिला भी हो गया. लेकिन इसके लिए उसने जो एलिजिबलिटी सर्टिफिकेट कमीशन के पास जमा किया, उसमें बताई गई उम्र उसकी जन्म तिथि से मेल नहीं खा रही थी. सर्टिफिकेट के मुताबिक, 31 दिसंबर 2014 को छात्र की उम्र 17 साल 4 महीने होती है, लेकिन उसकी जन्म तिथि के सबूतों के मुताबिक उम्र 16 साल 1 महीने ही हो रही थी.
जुर्माना 10 से 2 लाख हुआ
नेशनल मेडिकल कमीशन ने 11 अक्टूबर 2019 को छात्र के नाम कारण बताओ नोटिस जारी किया था, क्योंकि तब योग्यता के मानदंडों के मुताबिक उसकी न्यूनतम उम्र 17 साल नहीं हुई थी. छात्र ने हाई कोर्ट के आदेश पर नेशनल मेडिकल कमीशन के सामने अपनी बात रखी थी, लेकिन तब उसे खारिज कर दिया गया था. फिर छात्र के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गुहार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फर्जीवाड़ा करने का दोषी मानते हुए पहले 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया, फिर सहानुभूति दिखाते हुए यह राशि घटाकर 2 लाख रुपए कर दिया.