राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार (Sharad Pawar) ने पहले पद छोड़ने और फिर तीन दिन बाद निर्णय वापस लेकर एक ही झटके में एमवीए का सर्वेसर्वा बनने की तैयारी कर रहे शिवसेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और पार्टी में विभाजन की जमीन तैयार कर रहे भतीजे अजीत पवार (Ajit Pawar) को आईना दिखा दिया।
हाल के दिनों में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे खुद को महा विकास आघाड़ी (एमवीए) के सर्वोच्च नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। एमवीए की संयुक्त जनसभा, जिसे वज्रमूठ सभा नाम दिया गया है, में उनकी पार्टी की तरफ से उद्धव को ही एमवीए के नेता के रूप में पेश किया जा रहा था। लेकिन, शरद पवार के पद त्याग वाले घटनाक्रम से वज्रमूठ जनसभाओं पर न केलव ग्रहण लग गया बल्कि यह भी संदेश गया कि राकांपा प्रमुख के बिना एमवीए का कोई मतलब नहीं है। उधर, ईडी और सीबीआई की जांच के दायरे में आए या जमानतशुदा राकांपा के जो नेता अजीत पवार के साथ भाजपा से हाथ मिलाने की तैयारी में थे, उन पर भी अब दबाव बन गया है।
नहीं मिलेगा अजीत को विधायकों का समर्थन
शरद पवार के प्रति उपजी सहानुभूति के बाद अब अजीत पवार को पार्टी के विधायकों का समर्थन नहीं मिल सकेगा। राकांपा का अध्यक्ष चुनने के लिए बनी समिति ने पवार के अध्यक्ष पद छोड़ने के फैसले को जब खारिज किया तो उससे यह स्पष्ट हो गया कि फिलहाल पार्टी में उनका कोई विकल्प नहीं है। समिति के निर्णय के बाद पार्टी के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल व अन्य वरिष्ठ नेताओं ने शरद पवार से उनके दक्षिण मुंबई स्थित सिल्वर ओक आवास पर मुलाकात की।
विपक्षी एकता और एमवीए को देंगे मजबूती
शरद पवार ने कहा कि देश में विपक्षी एकता बनाने के साथ महाराष्ट्र में एमवीए को वह मजबूत करेंगे। संगठन में बदलाव कर उत्तराधिकारी तैयार करेंगे, लेकिन उत्तराधिकारी का चयन कब तक होगा, उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया। संवाददाता सम्मेलन में अजीत पवार मौजूद नहीं थे। शरद पवार ने राकांपा में दरार की अटकलों का खंडन किया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई जाना चाहता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता।