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मनीष गुप्ता हत्याकांड के आरोपी पुलिस वाले जेल में पढ़ रहे कानून की किताब, ऐसी है तैयारी

कानपुर के प्रॉपर्टी व्यवसायी मनीष गुप्ता हत्याकांड में चार्जशीट दाखिल हो चुुकी है। अब आरोपी पुलिसवाले अब खुद कानून की किताब पढ़कर बचाव के दांव-पेच तलाश रहे हैं। सभी आरोपी चार्जशीट के हिसाब से बचाव की तैयारी कर रहे हैं। घरवालों के जरिये सीबीआई कोर्ट में पेशी से पहले अधिवक्ता तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं। पिछले दिनों दिन गिनने में हुई गलती के चक्कर में उन्होंने 90 दिन के अंदर ही जमानत की अर्जी डलवा दी थी। जमानत की अर्जी तो खारिज ही होनी थी क्योंकि अगर 90 दिन पूरा होने पर यह आवेदन देना था।

गोरखपुर में होटल में व्यवसायी मनीष गुप्ता की पुलिस की बर्बर पिटाई से मौत हो गयी थी।इस हत्याकांड में आरोपी इंस्पेक्टर जेएन सिंह, सबइंस्पेक्टर अक्षय मिश्रा, राहुल दुबे, विजय यादव, हेड कांस्टेबल कमलेश और कांस्टेबल प्रशांत गोरखपुर जेल में बंद हैं। सभी आरोपियों को जेल में रहते हुए तीन महीने से ज्यादा हो गया था। आरोपी पुलिसवालों को उम्मीद थी कि सीबीआई अधिक से अधिक उनके मामले में गैर इरादतन हत्या में चार्जशीट लगाएगी पर ऐसा नहीं हुआ। 6 जनवरी को जब उनकी पेशी थी और उस दिन तक चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी। इस बीच आरोपी पुलिसवालों ने कमियां तलाशनी शुरू कर दी।

 

जेएन सिंह और अक्षय मिश्रा खुद विवेचना के मंझे हुए अच्छे जानकार हैं। आरोपियों ने अपनी गिनती के हिसाब 7 जनवरी को 90 दिन पूरा मान लिया था। हत्या के केस में चार्जशीट लगाने के लिए 90 दिन का समय दिया जाता है। आरोपित पुलिसवालों की गिनती में 7 जनवरी को, जबकि सीबीआई की गिनती में 10 जनवरी तक 90 दिन हो रहे थे। उसी दिन पेशी की अगली तारीख भी दी गई थी। जैसे ही आरोपी पुलिसवालों की तरफ से 7 जनवरी को जमानत की अर्जी डाली गई सीबीआई ने भी उसी दिन लखनऊ सीबीआई कोर्ट में हत्या में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था। आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज हो गई।

जेल में पढ़ रहे कानून की किताब

जेलर प्रेम सागर शुक्ल का कहना है कि मुझे नहीं मालूम कि आरोपी पुलिसकर्मी इस समय कौन की किताबें पढ़ रहे हैं। जेल में किताब पढ़ने से किसी बंदी को कोई मनाही नहीं है। जेल की लाइब्रेरी से जिसको जरूरत पड़ती है, वह पसन्द की किताब लेकर पढ़ता है।

चार्जशीट के बाद तेज हुई कवायद

मनीष गुप्ता की हत्या में चार्जशीट के साथ ही अन्य धाराएं पुलिसवालों पर लगाई गई हैं। इसकी जानकारी के बाद पुलिसवालों ने अपने मामले में खुद ही कानूनी दांव-पेच समझने के लिए कानूनी किताब पढ़नी शुरू कर दी है। आईपीसी सहित अन्य किताबों का वे अध्ययन कर रहे हैं। उसकी कमियां निकाल कर एक नोट तैयार कर रहे हैं। जिससे जरूरत पड़ने पर अपने अधिवक्ता के जरिये बचाव कर सकें।

जेल के पीसीओ से भी मिल रहा लाभ

आरोपी पुलिसवालों ने परिजनों को जेल की मुलाकात से दूर रखने के लिए पीसीओ से बातचीत का तरीका जेल में आने के कुछ दिन बाद से ही अपनाया है। आरोपियों ने परिवार का मोबाइल नम्बर बातचीत के लिए रजिस्टर्ड कराया है। इसी नम्बर पर बातचीत कर वे अपने बचाव से जुड़ा संदेश बाहर भेज रहे हैं। एक आरोपी पुलिसकर्मी को सप्ताह में एक से दो बार बात करने की सहूलियत दी जाती है।