रिपोर्ट- गौरव सिंघल,विशेष संवाददाता,दैनिक संवाद,सहारनपुर मंडल,उप्र:।।
देवबंद। श्री राम जानकी लीला समिति दुर्गा कॉलोनी रेलवे रोड के तत्वाधान में आयोजित रामलीला में अशोक वाटिका और लंका दहन का सुंदर और सजीव मंचन किया गया।।बाली वध के पश्चात लक्ष्मण जी किष्किंधा नगरी जाकर सुग्रीव का राज्य अभिषेक करते हैं। राजा बनने के बाद सुग्रीव श्री राम के पास आते है और सीता माता की खोज करने के लिए श्रीराम से आग्रह करते हैं। हनुमान, अंगद और जामवंत वानर सेना सहित माता सीता की खोज में दक्षिण दिशा में निकलते हैं। वहां एक पर्वत पर गिद्धराज जटायु के बड़े भाई मिलते हैं जिसका नाम संपाती था।
संपाती कहते है कि मैंने एक दिन एक राक्षस को विमान में एक रूपवती स्त्री को ले जाते हुए देखा था शायद वह रावण ही था अगर मुझे पता होता कि वह दुष्ट राक्षस मेरे भाई जटायु को मारकर जा रहा है तो मैं उस पापी का वही अंत कर देता। संपाती ने वानरों को बताया कि लंका यहां से 100 योजन की दूरी पर है। उसने यह भी कहा था कि मेरी आंखें रावण के महल को प्रत्यक्ष देख पा रही हैं। वहां तक पहुंचने के लिए किसी को पहले समुद्र पार करना होगा। सीता माता की खोज के लिए अंगद कहते हैं कि हनुमान जी से शक्तिशाली कोई नहीं है और समुद्र को सिर्फ वही लांघ सकते हैं। लेकिन तब हनुमान जी अपनी शक्तियां भूल चुके होते हैं। तब जामवंत हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद दिलाते हैं। उन्हें सुनकर हनुमान को अपनी खोई हुई शक्तियां याद आ जाती है। उसके बाद हनुमान जी लंका जाने के लिए उद्यत हो गए। जामवंत की प्रेरणा से उन्हें अपने बल पर विश्वास हो गया और समुद्र लांघने के लिए अपने शरीर का विस्तार किया।
हनुमान धरती को प्रणाम कर एक ही छलांग में महेंद्र पर्वत पर पहुँच गए।
लंका में हनुमान जी अशोक वाटिका में सीता माता की दशा देखकर बहुत दुखी हुए। तभी रावण वहां पहुंचता है फिर उसने सीता जी के सामने उन्हें अपनी पत्नी बनाकर सुख से रखने और अपनी सारी रानियों को उनकी दासी बनाने का प्रस्ताव रखा। परन्तु सीता जी साफ इंकार कर देती हैं इससे रावण गुस्से में आ जाता है और उसने अपनी तलवार म्यान से निकाल लेता है और गुस्से में पैर पटकता हुआ और धमकी देकर वहाँ से चला जाता है। रावण के जाने के बाद हनुमान सीता माता को भगवान राम की अंगूठी भेंटकर अपना परिचय देते हैं। जिसके बाद वह सीता माता को श्री राम को संदेश देने के लिए कहते हैं। इसके बाद हनुमान जी सीता जी की आज्ञा लेकर अशोक वाटिका के फल खाने लगते हैं और सारी अशोक वाटिका उजाड़ देते हैं।
वे अशोक वाटिका का विध्वंस कर देते हैं। इस खबर के फैलने के बाद मेघनाद का पुत्र अक्षय कुमार उन्हें मारने के लिए आता है लेकिन हनुमानजी उसका वध कर देते हैं। यह खबर लगते ही लंका में हाहाकार मच जाता है तब स्वयं मेघनाद ही हनुमानजी को पकड़ने के लिए आता है। मेघनाद हनुमानजी पर कई तरह के अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करता है लेकिन उससे कुछ नहीं होता है। तब अंत में मेघनाद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है। तब हनुमानजी मेघनाद के ब्रह्मास्त्र का सम्मान रखते हुए वृक्ष से गिर पड़ते हैं। फिर मेघनाद उन्हें नागपाश में बांधकर रावण की सभा में ले जाता है। वहां हनुमानजी हाथ जोड़कर रावण को समझाते हैं कि तू जो कर रहा है, वह सही नहीं है। प्रभु श्रीराम की शरण में आ जा। हर तरह से हनुमानजी रावण को शिक्षा देते हैं लेकिन रावण कहता है- रे दुष्ट! तेरी मृत्यु निकट आ गई है। अधम! मुझे शिक्षा देने चला है और कहता है- मैं सबको समझाकर कहता हूं कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है अत: तेल में कपड़ा डुबोकर इसकी पूंछ में बांधकर फिर आग लगा दो।
तब हनुमानजी को पकड़कर सभी राक्षस उनकी पूंछ को कपड़े से लपेटने लगते हैं। हनुमानजी अपनी पूंछ को बढ़ाना प्रारंभ करते हैं तो सभी देखते रह जाते हैं। पूंछ के लपेटने में इतना कपड़ा और घी-तेल लगा कि नगर में कपड़ा, घी और तेल ही नहीं रह गया। अंत में उनकी पूंछ में आग दी गई। तब वे अपनी जलती हुई पूंछ लेकर एक महल से दूसरे महल पर चढ़कर उनमें आग लगाने लगे। देखते ही देखते लंका में चारों तरफ भयंकर आग लग जाती है। इसके पश्चात् हनुमान जी माता सीता से आज्ञा लेकर और सबूत के तौर पर माता सीता की चूड़ामणि लेकर वापिस श्री राम जी के पास लौट जाते हैं। रामलीला कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अंतर्राष्ट्रीय ध्यान गुरुजी दीपांकर जी महाराज, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष विपिन गर्ग, हरीश त्यागी, वरिष्ठ भाजपा नेता चौधरी ओमपाल सिंह, सभासद विपिन त्यागी, सभासद श्याम चौहान, समाजसेवी सतीश जैन रहे। अशोक वाटिका में फल और सब्जियों मुन्ना पतंग वाले के सौजन्य से, प्रसाद वितरण नीरज सिंघल के द्वारा किया गया।