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यह है देश का सबसे बड़ा चमत्कारिक मंदिर, 24 परिक्रमा करने पर बरसती है देवगुरु बृहस्पति की कृपा

देशभर में ऐसे कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनके चमत्कारों को सुनने के बाद लोगों में उसके दर्शन की इच्छा जाग होती है। भारत में ढेरों प्राचीन मंदिर है और हर मंदिर की एक पारंपरिक कथा (traditional legend) और चमत्कार हैं। इन मंदिरों का जिक्र ग्रंथों में भी मिलता है। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु (Tamil Nadu) के अलनगुड़ी में स्थित है। इस मंदिर का विशेष महत्व है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस पावन स्थान पर देवगुरु बृहस्पति ने भगवान शिव की अराधना करके नवग्रहों (Navagrahas) में प्रथम स्थान का आशीर्वाद पाया था।

बता दें कि बृहस्पति देव को सबसे अधिक शुभ और शुभ फलों को देने वाला ग्रह माना जाता है। इसी कारण ये अत्यंत वंदनीय और पूजनीय हैं। बृहस्पति देव (Jupiter Dev) के देशभर में कई सिद्ध मंदिर हैं, जहां दर्शन और पूजन मात्र से ही सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है। ऐसा ही एक सिद्ध मंदिर तमिलनाडु के कुम्भकोणम् के निकट अलनगुड़ी में स्थित है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

सातवीं शताब्दी में हुई थी मंदिर की स्थापना

बृहस्पति देव के इस मंदिर को दक्षिणाभिमुख अवष्टक के नाम से भी जाना जाता है। बृहस्पति देव के अलावा इस मंदिर में भोलेशंकर, सूर्यदेव, सोम और सप्तर्षि के मन्दिर भी शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सातवीं शताब्दी में पल्लव शासकों के समय की गई थी।

24 परिक्रमा की है मान्यता 

देवगुरु बृहस्पति के इस प्रसिद्ध मंदिर को लेकर एक मान्यता ये है कि मन्दिर की 24 परिक्रमा करने पर व्यक्ति को देवगुरु बृहस्पति का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही, जीवन के सभी दुखों से छुटकारा मिलता है।

बृहस्पति देव ने की थी शिव जी की साधना 

मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि बृहस्पति देव ने इस पावन स्थान पर आकर शिव जी की अराधना की थी। इसके बाद उन्हें नवग्रहों में सबसे श्रेष्ठ ग्रह होने का वर प्राप्त हुआ था। इसी कारण उन्हें यह स्थान अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा, एक मान्यता यह भी है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान भगवान शिव ने यही किया था।

मंदिर से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा के सात पुत्रों ने एक बार एक ब्राह्मण का अपमान कर दिया। और इस दोष के चलते उनका सारा राजपाट नष्ट हो गया और वे दरिद्र हो गए। इसके बाद राजा के सबसे छोटे बेटे-बहू ने यहीं आकर देवगुरु की उपासना की। ऐसा करने से उनका खोया हुआ सारा साम्राज्य वापस मिल गया। तब से लेकर यह मान्यता चली आ रही है कि इस स्थान पर आकर भक्ति भाव से देवगुरु बृहस्पति की पूजा करने वाला कभी खाली हाथ नहीं लौटता।