रिर्पोट :- गौरव सिंघल,वरिष्ठ संवाददाता,दैनिक संवाद सहारनपुर मंडल।
सहारनपुर। ब्रांड एंबेसेडर और योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने प्रजातंत्र, चुनाव और हम विचार श्रृंखला में मुख्य संबोधन करते हुए कहा कि मैं और आप राजनीतिक लोग बिल्कुल भी नहीं हैं लेकिन हमारा इस तरफ से आंख मूंदना देश व समाज को अंधेरे की तरफ धकेलना है क्योंकि देश की राजनीति का सीधा असर सिर्फ हर नागरिक ही नहीं देश के पशु पक्षियों पर भी पड़ता है। उन्होंने कहा कि आमजन जितना जागरूक होगा हमारे राजनेता भी उतना ही अच्छा काम करने के लिए प्रेरित होंगे। नेताओं के काम पर नजर रखना और सही काम में उनका सहयोग करना नागरिकों का धर्म है। योग गुरु भारत भूषण ने कहा कि आध्यात्मिक लोगों का कार्य राजनीति करना नहीं है लेकिन राजनीति को सही दिशा देना अवश्य उनका ही काम है!
योग गुरु बोले कि चुनाव प्रचार करना राजनीतिज्ञों का कार्य हो सकता है लेकिन लोकतंत्र में नागरिकों को अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागृति लाने के लिए अपना दायित्व जागरूक नागरिकों को अवश्य निभाना चाहिए। स्वामी भारत भूषण ने कहा कि देश हित में निष्पक्ष होकर मतदान करना और सरकार चुनना हर नागरिक का दायित्व है। हमारे गैर जिम्मेदारी से ही गैर जिम्मेदार सरकार बनती है और फिर हम पांच साल देश के दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं। योगगुरु भारत भूषण ने कहा कि लोकतंत्र में आम मतदाता ही सबसे बड़ा अधिकारी व राष्ट्र निर्माता है क्योंकि उसके वोट से सरकारें बनती हैं, यह उसकी शक्ति भी है और जिम्मेदारी भी, उसे अपनी इस शक्ति को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेता जनता के अधिकारी नहीं जनसेवक हैं और जिम्मेदार जनसेवकों का मान अवश्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि योग का काम सिर्फ स्वास्थ्य साधना और आत्मा को परमात्मा से मिलाना ही नहीं बल्कि समाज को जोड़ना और जगाना भी है।
गुरु पद्मश्री भारत भूषण ने चुटकी लेते हुए कहा कि जिन्हें हम राजनीतिज्ञ समझ बैठते हैं असल में वो राजनीतिज्ञ हैं ही नहीं। वो तो बिचारे कमजोर से मोहरे हैं जिन्हे इस्तेमाल करने के लिए असल राजनीतिज्ञ अपनी बिसात बिछाते हैं और यह प्रकट रूप में बहुत ताकतवर जैसे दिखने वाले मोहरे अपना अस्तित्व बचाने के लिए इधर उधर दौड़ते अपना राजनीतिक आका तलाशते नजर आते हैं, ये चाहते हैं कि चुनावी घोषणा होने से पहले अपने लिए सुरक्षित स्थान खोज लें ताकि इनके पांव जम सकें। इन राजनैतिक मोहरों की सबसे अधिक दयनीय स्थिति इसलिए भी होती है कि इन्हे एक ही पल में अनेक रूप लेकर जीना होता है। कहीं मीठी मुस्कान देनी होती है तो उसी क्षण दूसरी तरफ महाविनाश कर देने जैसा रौद्र रूप, तीसरी तरफ मंत्रिपद पाने के लिए पांवों में लोटकर अनुनय विनय, चौथे तरफ कुछ भी न चाहने वाली नितांत तृप्ति का ऐसा भाव जैसे कि मानो इन्हे कुछ चाहिए ही नहीं, इनके पास कड़ी मेहनत से हासिल किया हुआ सभी कुछ है और ये तो समाज व देश को बहुत कुछ देना मात्र चाहते हैं। प्रकट रूप में इन नेता नुमा चतुर्मुखी ब्रह्मा सरीखे दिखने वाले दयनीय प्राणियों के भीतर के डर को तो विरला ही देख और समझ पाता है।
उन्होंने कहा, सच तो यह है कि पूरे महाभारत में इतने प्रतापी राजा, इतने सुभट योद्धा, इतने जनबल व धनबल वाले दिग्गजों में से एक भी राजनीतिज्ञ नहीं था। वे सभी असल राजनीतिज्ञ योगेश्वर श्री कृष्ण की बिछाई बिसात के एक मोहरे से अधिक कुछ नहीं थे। ये अलग बात है कि आज के राजनैतिक आका कृष्ण सरीखे लोककल्याण के लिए जीने और श्रीमद्भगवद्गीता जैसे जीवन सूत्र देने वाले आध्यात्मिक महामानव नहीं हैं लेकिन देश के दुर्भाग्य से राजनीति घूमती तो उन नेताओं के इर्द-गिर्द ही है।
प्रजातंत्र में सत्ता आमजन के हाथ में ही होती है भले ही आमजन राजनीतिज्ञ नहीं होता और न ही बिसात पर बिछा हुआ मोहरा लेकिन राजनीति से प्रभावित तो पूरी तरह आमजन ही होता है। इसलिए चुनाव के समय और उसके बाद भी उसकी अधिक जिम्मेदारी बनती है! उन्होंने पढ़े लिखे जिम्मेदार लोगों का मतदान करने से बचना और मतदान के दिन छुट्टी होने के कारण वोटर्स का कहीं बाहर सैर सपाटे के लिए निकल जाना देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि सही तौर पर निष्पक्ष मतदान करना लोकतंत्र में सबसे बड़ा धर्म है। इस ऑनलाइन परिचर्चा में धर्मगुरु, अधिवक्ता, व्यापारी, विद्यार्थी, डॉक्टर, महिलाएं, किसान, शिक्षक, उद्यमी, श्रमिक, खिलाड़ी व राजनीति से जुड़े लोग भी शामिल रहे।