अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब यह देश पाकिस्तान के इशारों पर चलेगा। तालिबान को लेकर भारत ने अभी तक कोई ठोस निर्णय लिए जाने का ऐलान नहीं किया है और लगातार अफगान की स्थिति पर नजर रखी जा रही है। हालांकि, अब तालिबान भारत की चिंताओं का भी हल निकालेगा। खुद विदेश सचिव हर्षवर्द्धन श्रंगला ने कहा है कि तालिबान के साथ भारत के संबंध सीमित रहे हैं लेकिन उसने संकेत दिया है कि वह भारत की चिंताओं का उचित तरीके से समाधान निकालेगा।
हर्षवर्द्धन श्रृंगला ने कहा, ‘उनके (तालिबान) साथ हमारा जुड़ाव सीमित रहा है। ऐसा नहीं है कि हमारे बीच काफी बातचीत हुई हो, लेकिन अब तक हमने जो भी बातचीत की है, तालिबान ने यह संकेत दिया है कि वह उचित तरीके से सब कुछ संभालेगा।
‘ ‘भारत को निशाना बनाकर न हो कोई आतंकी गतिविधि’
भारत के राजदूत दीपक मित्तल और तालिबान के राजनीतिक कायार्लय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई के बीच दोहा में हुई बैठक पर उन्होंने कहा कि भारत ने तालिबान से कहा था कि वह चाहता है कि उसे यह पता रहे कि उनके क्षेत्र से कोई ऐसी आतंकवादी गतिविधि नहीं होनी चाहिए, जिसका निशाना भारत हो।विदेश सचिव ने कहा, ‘हमने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि हमने उनसे कहा है कि हम चाहते हैं कि वे इस तथ्य से अवगत हों कि उनके क्षेत्र से कोई ऐसी आतंकवादी गतिविधि नहीं होनी चाहिए जिसका निशाना भारत या अन्य देश बनें। हम चाहते हैं कि वे महिलाओं और अल्पसंख्यकों आदि की स्थिति के प्रति सावधान रहें और मुझे लगता है कि उन्होंने भी अपनी ओर से इसका आश्वासन दिया है।’
‘अफगान में कई तत्वों को है पाकिस्तान का समर्थन’
श्रृंगला ने कहा कि पाकिस्तान की भूमिका पर इस्लामाबाद ने तालिबान का ‘समर्थन और पोषण’ किया है। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान, अफगानिस्तान का पड़ोसी है, उसने तालिबान का समर्थन और पोषण किया है। ऐसे कई तत्व हैं, जो पाकिस्तान समर्थित हैं- इसलिए उसकी भूमिका को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।’ उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका, अफगानिस्तान की स्थिति को बहुत करीब से देख रहा है। वे स्पष्ट रूप से देखेंगे कि अफगानिस्तान की स्थिति में विभिन्न पक्ष कैसे जुड़ते हैं।
‘वेट एंड वॉच है भारत का स्टैंड’
यह पूछे जाने पर कि संयुक्त राष्ट्र 1988 प्रतिबंध समिति या तालिबान प्रतिबंध समिति का नेतृत्व करने के लिए भारत की नीति क्या होगी, श्रृंगला ने कहा, ‘दो बातें सामने आ रही हैं, पहली है अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) जनादेश का विस्तार और दूसरा 1988 की तालिबान प्रतिबंध समिति की सूची से हटने का मुद्दा, जिसके हम अध्यक्ष हैं, और हमें उस पर काम करना होगा।’ उन्होंने कहा, ‘दूसरे शब्दों में, हमारा स्टैंड ‘वेट एंड वॉच’ है, हमें यह देखना होगा कि जमीनी हालात कैसे बनते हैं। मेरा मतलब है कि क्या हम तुरंत कदम उठाने जा रहे हैं, मुझे ऐसा नहीं लगता; जो होता है उसके अनुसार क्या हम अपने निर्णयों में सुधार करने जा रहे हैं। यह मत भूलिये कि हम 15 सदस्यों में से एक हैं और हमें यह भी देखना होगा कि बाकी अंतरराष्ट्रीय समुदाय क्या कह रहा है, और यूएनएससी में यह आम सहमति पर आधारित है।’