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नेताओं जागो! जिस्म के भूखे भेड़िए आजाद हैं?

रिपोर्ट : कृष्ण कुमार द्विवेदी( राजू भैया)

भारतीय संस्कृति पर बढ़ती जा रही बलात्कार की कालिमा चिंतनीय नहीं शर्मनाक है

सहमी बेटियां हवस के दरिंदों का पूरे देश में बन रही है शिकार?

बलात्कार पर बेशर्म राजनीति नहीं बल्कि सर्वदलीय कठोर दंड नीति की जरूरत है

मां भारती का आंचल हवस के वहशी दरिंदों के खूनी तांडव से कराह रहा है ।बलात्कारी बेखौफ होकर पूरे देश में बेटियों को निशाना बना रहे हैं। बलात्कार और बेशर्म राजनीत पीड़िता व उसके परिजनों के हृदय पर बार-बार बलात्कार करती है! तो वही जिस्म के भूखे भेड़िए आजाद घूमते नजर आते हैं? स्पष्ट है कि अब देश में सर्वदलीय प्रयास होता दिखाई देना चाहिए। क्योंकि भारतीय संस्कृति पर बलात्कार की कालिमा बढ़ती जा रही है? यदि देश के नेता अब इससे चूके तो आने वाली पीढ़ी इन्हें कभी माफ नहीं करेगी।

देश में कोई भी प्रदेश शायद ही बलात्कार के घावों से घायल ना हुआ हो। ताजा घटनाक्रम में पूरे देश में हाथरस की घटना काफी चर्चित है। राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ जैसे अन्य कई प्रदेशों में भी बलात्कार की बड़ी घटनाएं घटी है। सवाल यह है कि यह घटनाएं कोई आज नई तो नहीं है। इससे पहले भी हर दल की सरकारों में बलात्कार होते रहे हैं। आज की सरकारों में भी बलात्कार हो रहे हैं। देखा गया है चाहे पहले की सरकारों में रहा हो या फिर आज की सरकार में जब किसी पीड़िता के साथ बलात्कार होता है तब विपक्ष में रहने वाले दल इस पर निम्न राजनीति करते नजर आते हैं। जबकि सरकार भी बेशर्मी के साथ फला सरकार में यह रेप हुआ था, वह घटना हुई थी यह बताती हुई अपना बचाव करती दिखाई देती है?

चिंतनीय पहलू यह है कि देश के नेताओं को अब जागना चाहिए? चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी दलों के नेताओं को एक साथ बैठकर के बलात्कार के बढ़ते अपराधों से निपटने के लिए एक आम राय होना चाहिए। सर्वदलीय नेताओं को बलात्कार तथा बलात्कारियों के विरुद्ध एकजुटता के साथ ऐसा कानून लाना चाहिए कि इस पर अंकुश लग सके। राजनीतिक दलों के नेताओ प्रयास करना चाहिए कि किसी भी बलात्कारी को सियासी संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को टिकट नही पार्टी की सदस्यता तक नहीं देनी चाहिए। लेकिन ऐसा शायद ही सियासी नेता सोच सके?

क्योंकि यहां तो जब किसी बच्ची के साथ बलात्कार होता है तो उस पर राजनीति को कैसे चमकाया जाए इसके प्रयास किए जाते हैं! बलात्कार के बाद एक पीड़िता की हत्या कर दी गई तो राजनीति चमकाने के लिए घड़ियाली आंसू बहाने की निम्न देहरी तक भी अगर जाना पड़ता है तो नेता जाते हैं? शायद इसी का फायदा उठाता है हमारा भ्रष्ट सिस्टम एवं एवं बेखौफ हो चुका बलात्कारी।

बलात्कार की घटनाओं ने भारतीय संस्कृति के चेहरे पर शर्मनाक कालिमा को पोतने का काम जारी कर रखा है। जिस्म के भूखे भेड़िए आजाद होकर बहन बेटियों को निशाना बनाते हैं! हद तो तब हो जाती है जब हवस के दरिंदे बच्चियों को भी नहीं छोड़ते? ऐसी स्थिति में राज ना खुले, बलात्कार पीड़िताओ की हत्या तक कर दी जाती है। बहन बेटियों से मासूमियत छीन ली जाती है। लोक लाज के डर से कई बार बलात्कार की शिकार बहन बेटियां आत्महत्या तक कर लेती हैं ।बलात्कार एक ऐसा घाव है जो किसी नेता के साथ एक बार नहीं होता बल्कि जितनी बार इसकी चर्चा होती है उतनी बार उसके मन मस्तिष्क पर बलात्कार होता है।

तमाम ऐसी घटनाएं हैं जो सामने नहीं आ पाती। लज्जा के कारण या फिर भय के कारण? रिश्तो की खाल ओढ़कर बलात्कार करने वाले बलात्कारी समाज के लिए कलंक बन चुके हैं। शर्म तो तब आती है जब देश के नेता मेरी सरकार में कम बलात्कार तुम्हारी सरकार में ज्यादा बलात्कार की बेशर्म तुकबंदी करते दिखते हैं। ये इतने अंधे हो चुके हैं कि वह छोटा बलात्कार एवं बड़ा बलात्कार का ज्ञान भी बांटते दिखते हैं? हाथरस में बेटी के साथ बलात्कार होता है और पुलिस के बड़े अधिकारी उसे नकारते हैं? यही नहीं बलात्कार की शिकार बेटी जब प्राण छोड़ देती है तो उसका अंतिम संस्कार भी पुलिस जबरन कर देती है। घिनौना तो तब लगता है जब इस दौरान एक पुलिसकर्मी हंसते हुए सिस्टम पर कालिख पोतता दिखाई देता है।

हाथरस के डीएम की बड़ी पहुंच भी चौकाती है? पूरी सरकार बदनामी के घेरे में आती है लेकिन जिलाधिकारी का बाल बांका नहीं हो पाता? स्पष्ट है कि राजनीतिक शह मात के खेल में बलात्कार पीड़िता की आत्मा के साथ भी जिम्मेदार बार-बार बलात्कार करते हैं?

आवश्यकता इस बात की है कि आज देश का प्रत्येक दल एवं प्रत्येक नेता एक साथ बैठे। भारतीय संस्कृति व सभ्यता को बचाने के लिए सभी नेता एकजुट होकर ,एक राय होकर बलात्कार एवं बलात्कारियों के विरुद्ध कोई अभियान छेड़े। यहां टुच्ची अथवा सस्ती या बेशर्म राजनीत कतई नहीं होनी चाहिए ।देश से बलात्कार व बलात्कारियों को खत्म करने के लिए सर्वदलीय प्रयास होने चाहिए। बलात्कार पर बेशर्म राजनीति नहीं होनी चाहिए। बल्कि सर्वदलीय कठोर दंड नीति का प्रावधान सामने आना चाहिए। नेताओं को यह सोचना चाहिए कि प्रत्येक बेटी केवल बेटी होती है। प्रत्येक बहन बस बहन होती है उसकी कोई जात नहीं होती! बलात्कार की शिकार बहन तथा बेटी पूरे देश की बहन-बेटी है ।जबकि बलात्कार करने वाला भेड़िया उसका कोई धर्म नहीं होता। उसकी भी कोई जात नहीं होती है। बलात्कारी की जाति व धर्म केवल बलात्कारी होती है।

नेताओं को समझना होगा कि बलात्कार एक घृणित सोच है। जिसे रोकने की आवश्यकता है। अन्यथा देश के नेता यदि इसी प्रकार अपने स्वार्थ लिप्सा में पड़कर बलात्कार जैसे गणित घटनाक्रम पर भी बेशर्म राजनीत करते रहे तो आने वाली पीढ़ियां इन्हें कभी माफ नहीं करेंगी। आज देश बलात्कार की शिकार बहन बेटियों एवं बच्चियों की चित्कार से बार-बार आहत हो रहा है ।सियासत की मोटी खाल ओढ़े नेताओं को यह चीखें राजनीति के लिए तो सुनाई पड़ती है लेकिन यह चीखें खत्म हो इसके लिए वह कोई प्रयास करते नजर नहीं आते हैं? फिलहाल बलात्कार एवं बलात्कारियों के दौर में हर घंटा- हर मिनट सभ्य समाज को डराता है। सहमी बेटियां व कराहती भारतीय संस्कृति बार-बार एक सवाल करती है कि जिस्म के भूखे भेड़िए देश में कब तक आजाद घूमेंगे? कब तक आजाद घूमेंगे।नेताओं सोचो?