सावन के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी (Nag Panchami) का त्योहार मनाया जाता है. इस बार नागपंचमी 2 अगस्त 2022, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी. इस दिन घर में गोबर से नाग बनाकर नाग देवता की पूजा की जाती है. माना जाता है कि इससे सर्पदंश का भय दूर होता है साथ ही धन-धान्य(wealth) भी प्राप्त होता है. इस दिन नाग देवता (serpent god) का दर्शन बेहद ही शुभ माना जाता है. आइए जानें क्या है इसकी कथा
नागपंचमी की पौराणिक कथा (Nag Panchami Ki Pauranik Katha)
नागपंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं, पर आज हम आपको इनमें से एक प्रसिद्ध कथा के बारे में बता रहे हैं. एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार,प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे और सातों के विवाह हो चुके थे.सबसे छोटे पुत्र की पत्नी बहुत ही सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था. एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को कहा. सभी बहुएं डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने के लिए निकल गई . जब वह मिट्टी खोद रही थी, तो वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी.यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा कि इसे मत मारो ? यह बेचारा निरपराध है. यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा. तब छोटी बहू ने उससे कहा कि हम अभी लौट कर आते हैं, तुम यहां से जाना मत. यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था,उसे भूल गई.ऐसे बनाया भाई
दूसरे दिन उसे जब बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली, सर्प भैया नमस्कार! उसको ऐसा बोलते सुनकर सर्प ने कहा कि तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता. उसकी बात सुनकर वह बोली, भैया मुझसे भूल हो गईहै उसके लिए क्षमा मांगती हूं.तब सर्प ने कहा कि अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ, जो तुझे जो मांगना हो, मांग ले. वह बोली, भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया.
जब बहन भाई के घर गई
इसके बाद कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहिन को भेज दो. जब परिवारवालों ने कहा कि इसका तो कोई भाई है ही नहीं, तो वह बोला कि मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं और बचपन में ही बाहर चला गया था.उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया. उसने अपनी बहन को मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना. उसने उसके कहे अनुसार वैसा ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई. वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.
जब गर्म दूध से जल गया मुंह
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा कि मैं किसी काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना. उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख जल गया. यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई. परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई. तब सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए. तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी,जवाहरात और वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया.
सब वस्तुएं सोने की
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए. सर्प ने जब यह सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं. यह देखकर बड़ी बहू बोली कि इन्हें झाड़ने के लिए झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए. तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी.
हीरा-मणियों का अद्भुत हार
सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था.जिसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए. रानी की बात सुनकर राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि वह उस हार को लेकर शीघ्र उपस्थित हो. मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो. सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया.
जब हार बना सर्प
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी और उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर बोली कि भैया! रानी ने हार ले लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए. छोटी बहू के कहने पर सर्प ने ठीक वैसा ही किया. रानी ने जैसे ही हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया. यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी.
मुद्राएं पुरस्कार में दी
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए. राजा ने छोटी बहू से पूछा कि तूने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा.यह सुनकर छोटी बहू बोली राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है. यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा कि अभी पहन कर दिखाओ.छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया. यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं.
सर्प को भाई मानकर की पूजा
छोटी वह अपने हार को लेकर घर लौट आई. उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है.यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा कि ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी.तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा कि यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर कोई संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूंगा.यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया.उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जानें लगा और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं.
(नोट- इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।)