हर साल कार्तिक के महीने में त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. ये दीपावली से ठीक दो दिन पहले पड़ता है. माना जाता है कि इसी दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि का भी जन्म हुआ था. भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है. त्रयोदशी तिथि के दिन उनका जन्म होने की वजह से ही इस दिन को धनतेरस कहा जाता है.
हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान धन्वतरि की पूजा करने से व्यक्ति निरोगी और स्वस्थ रहता है. इसलिए उनके जन्म दिवस के अवसर पर धन्वंतरि भगवान की पूजा जरूर करें. साथ ही उनके मंत्रों का जाप भी करें. इस बार धनतेरस 2 नवंबर मंगलवार के दिन है. जानिए भगवान धन्वंतरि के मंत्र और आरती.
इन मंत्रों का करें जाप
1. ॐ श्री धनवंतरै नम:
2. ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:,
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप,
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः
3. ॐ रं रुद्र रोग नाशाय धन्वंतर्ये फट
4. ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः,
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम,
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम,
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम.
ये है आरती
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा.तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए,
देवासुर के संकट आकर दूर किए.
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया,
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया.
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी,
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी.
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे,
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे.
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा,
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा.
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे,
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे.
शाम को दीपदान का शुभ मुहूर्त
सुबह के समय भगवान धन्वंतरि की पूजा करने के बाद शाम के समय दीपदान जरूर करना चाहिए. भगवान धन्वंतरि परिवार के सदस्यों की सेहत को बेहतर करते हैं और शाम का ये दीपदान परिवार के लोगों को अकाल मृत्यु से बचाने के लिए होता है. ये दीप यमराज को समर्पित होता है. धनतेरस के दिन दीपदान और पूजन का अतिशुभ समय शाम 5 बजे से 06:30 मिनट तक रहेगा. इसके अलावा शाम 06:30 मिनट से रात 08:11 मिनट का समय भी पूजा और दीपदान के लिए शुभ माना गया है.