नवग्रहों में बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना गया है. बृहस्पति को गुरु ग्रह के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिष में गुरु ग्रह सुख, समृद्धि और सौभाग्य के कारक माने गये हैं. सबसे अधिक शुभ और शुभ फलों को देने के कारण ये अत्यंत ही वंदनीय और पूजनीय माने गये हैं. ज्ञान और सौभाग्य के कारक देवगरु बृहस्पति के देश में कई सिद्ध मंदिर हैं, जहां दर्शन एवं पूजन मात्र से ही सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है. देवगुरु बृहस्पति का एक ऐसा ही सिद्ध मंदिर तमिलनाडु के कुम्भकोणम् के निकट अलनगुडी में स्थित है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
सातवी शताब्दी में बना था मंदिर
अलनगुड़ी स्थित देवगुरु का मंदिर दक्षिणाभिमुख अवष्टक के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में देवगुरु के अलावा शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले भगवान शंकर, प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव, सोम और सप्तर्षि के मन्दिर भी हैं. मान्यता है कि बृहस्पति देवता के इस मंदिर की स्थापना सातवीं शताब्दी में पल्लव शासकों के समय की गई थी. उसके बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार चोल शासकों के समय करवाया गया था.
मंदिर से जुड़ी मान्यता
देवगुरु बृहस्पति के इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मन्दिर की 24 परिक्रमा करता है, उस पर देवगुरु बृहस्पति का विशेष आशीर्वाद बरसता है और उसके जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
देवगुरु बृहस्पति ने की थी शिव साधना
मान्यता है कि इसी पावन स्थान पर आकर कभी देवताओं के गुरु कहलाने वाले बृहस्पति देव ने भगवान शिव की विशेष उपासना की थी. जिसके बाद उन्हें नवग्रहों में सबसे श्रेष्ठ ग्रह होने का सम्मान प्राप्त हुआ था. यही कारण है कि देवगुरु बृहस्पति को यह स्थान अत्यंत प्रिय है. मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले विष का भगवान शिव ने यही पान किया था.
मंदिर से जुड़ी कथा
मान्यता है कि एक राजा के सात पुत्र थे. जिन्होंने एक बार एक ब्राह्मण का अपमान कर दिया था. जिसके दोष के कारण उनका सारा राजपाट नष्ट हो गया और वे दरिद्र हो गए. इसके बाद उनके सबसे छोटे बेटे और बहू ने यहीं पर आकर देवगुरु की उपासना की. जिसके बाद उनका खोया हुआ सारा साम्राज्य वापस मिल गया. तब से लेकर यह मान्यता चली आ रही है कि इस स्थान पर आकर भक्ति भाव से देवगुरु बृहस्पति की पूजा करने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता है.