कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस बार बुधवार, 3 नवंबर को हस्तनक्षत्र विष्कुम्भ योग ववकरण के शुभ संयोगो के साथ नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी एवं छोटी दीपावली मनाई जाएगी. इस दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी या फिर छोटी दीपावली भी कहते हैं. इस दिन सुबह नहाने से पहले उबटन लगाते हैं और अहोई अष्टमी के बचे हुए जल को नहाने के पानी में मिलाकर नहाते हैं या मुंह धोते हैं.
इस वजह से पड़ा नरक चतुर्दशी का नाम
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अहोई अष्टमी के दिन बचे हुए जल को मिलाकर नहाने से रूप में निखार आता है. इस दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह का अवतरण हुआ था. कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, ऐसा करने से रोग दोष से मुक्ति मिलती है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, तब से इस तिथि का नाम नरक चतुर्दशी पड़ गया.
पूजन विधि
शाम के समय घर का मुखिया एक थाली में चने की दाल, खील-बताशे, धूपबत्ती, 1 घंटी में पानी, सरसों के तेल का दीपक और ₹1 का सिक्का लेकर दीपक जलाते हैं. जला हुआ दीपक रखने के बाद धूपबत्ती जलाएं और मंत्र “ओम धूमं धूमं धूमावती स्वाह” की एक माला का जाप करें. माता धूमावती (दरिद्रताकी देवी) से प्रार्थना करें कि हे माता हमारे घर, परिवार, कारोबार से पूरे साल दरिद्रता, रोग, दोष, बुरी नजर का नाश हो. प्रार्थना करने के बाद लोटा, गिलास में जल भरकर घर के मुख्य द्वार चौखटों पर चढ़ाकर वापस घर में प्रवेश कर जलती धूप बत्ती और दीपक को नाली के किनारे मुख्य दरवाजे पर रख दें. ऐसा करने से पूजा करने वाले घर परिवार में वर्ष भर माता धूमावती की कृपा बनी रहती है.
दीपक जलाने और पूजा करने का सर्वोत्तम समय शाम 07:30 बजे से रात 08:30 बजे तक
इस समय विश्व प्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार गोधूलि की बेला और प्रदोष काल दोनों का समावेश होगा, जो किसी भी कार्य के लिए सर्वोत्तम है. इस दौरान “शुभ” का चौघड़िया मुहूर्त उपलब्ध रहेगा, जिसमें पूजा करने वाले जातकों को सभी प्रकार के लाभ और उन्नति प्राप्त होगी.