नेपाली नेता बयानबाजी में तो सबसे आगे रहते है, लेकिन जब कभी भी उनके ऊपर दिक्कतें आती है, तो सबसे पहले उनकी जुबान पर एक ही नाम आता है और वो नाम होता है भारत (India). इस बार भारत की याद पुष्प कमल दहल उर्फ ‘प्रचंड’ (Pushpa Kamal Dahal ‘Prachanda’) को आई है. उन्होंने भारत देश से मदद मांगी है. ऐसा इसलिए क्योंकि वहां के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने संसद भंग कर दी, जिसके कारण नेपाल दिक्कतें आ रही हैं. प्रचंड ने सविंधान के विरुद्ध बताया है. अब वो अपनी इच्छा रख रहे है कि भारत सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे पर उनकी सहायता के लिए आगे आए.
साल 2020 में भंग की थी सभा
नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने प्रचंड के साथ सरकार पाने के लिए वाद-विवाद साल 2020 में 20 दिसंबर को प्रतिनिधि सभा भंग कर दी थी, जिसके बाद से वहां राजनीतिक संकट छा गया है. पीएम ने 275 सदस्यीय सदन को भंग किया था, जिसके बाद प्रचंड गुट उनका विरोध कर रहा है. प्रचंड (Prachanda) ने काठमांडू में एक समूह से बातचीत में कहा कि अगर हमें संघीय ढांचे एवं लोकतंत्र को मजबूत करना है, तो प्रतिनिधि सभा को बहाल करना होगा.
आज होगा Prachanda का शक्ति प्रदर्शन
इस मामले को लेकर आज यानि की बुधवार को प्रचंड शक्ति प्रदर्शन करने के लिए राजधानी में एक विशाल रैली करने जा रहे हैं. इससे पहले उन्होंने बोला था कि मुझे लगता है कि उच्च्तम न्यायालय प्रतिनिधि सभा भंग करने के प्रधानमंत्री के असंवैधानिक एवं अलोकतांत्रिक कदम को स्वीकृति नहीं देगा. चेतावनी देते हुए प्रचंड ने कहा है कि यदि सदन को बहाल नहीं किया गया, तो देश एक गंभीर राजनीतिक संकट में चला जाएगा. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती देने के लिए हम सभी को सरकार के इस फैसले के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. इस बारे में प्रचंड ने कहा कि उनकी पार्टी ने पड़ोसी देशों भारत और चीन सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय से ओली के ऐसे काम के खिलाफ उनका साथ देने की बात कही है. उन्होंने कहा कि हमने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस बात से अवगत कराया है कि ओली के इस काम से लोकतंत्र को भारी दिक्कते उठानी पड़ी है और हम भारत, चीन, यूरोपीय संघ और अमेरिका से देश के संघीय ढांचे और लंबे संघर्ष के बाद हासिल किए गए लोकतंत्र के प्रति समर्थन मांग रहे हैं.
ये है नेपाल का आंतरिक मामला
इस मामले में भारत ने अपने विचार रखते हुए कहा कि संसद भंग करना प्रधानमंत्री ओली के फैसले को नेपाल का आंतरिक मामला कहा है. भारत ने ये भी कहा है कि इस बारे में पड़ोसी देश को ही अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के मुताबिक फैसला लेना होगा. बता दें कि चीन अभी भी इस कोशिश में है कि नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी को बांट दिया जाए. उसने पिछले साल दिसंबर में चार सदस्यीय उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजा था, जिसने नेपाल के शीर्ष नेताओं के साथ अलग-अलग बैठकें की थीं, लेकिन प्रतिनिधिमंडल ओली और प्रचंड के बीच सुलह कराने में सफल नहीं हो सका.