सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद भी मासिक पेंशन दी जाती है लेकिन अब इस लाभ का हिस्सा प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को भी बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। अब इंप्लाई पेंशन स्कीम, 1995 (EPS) की शुरुआत की है ताकि प्राइवेट सेक्टर के संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद मासिक पेंशन का लाभ मिल सके। इस स्कीम के तहत एंप्लॉयर द्वारा कर्मचारियों के ईपीएफ में किए जाने वाले 12 फीसदी कॉन्ट्रीब्यूशन में से 8.33 फीसदी EPS में जाता है। ऐसे में 58 साल की उम्र के बाद कर्मचारी EPS के पैसे से मंथली पेंशन का लाभ पा सकता है।
वहीं, संगठित क्षेत्र की जो कंपनियां इपीएफओ के दायरे में आती है उन्हें अपने कर्मचारियों को EPF का लाभ उपलब्ध करवाना होगा। EPF में एंप्लॉयर और इंप्लॉई दोनों की ओर से योगदान कर्मचारी की बेसिक सैलरी+DA का 12-12 फीसदी है। नियोक्ता के 12 फीसदी योगदान में से 8.33 फीसदी इंप्लॉई पेंशन स्कीम EPS में जाता है। सूत्रों के मुताबिक, PF पर ज्यादा ब्याज देने और इम्प्लाइज पेंशन फंड (EPS) के तहत 5000 रुपये प्रति महीना पेंशन करने की तैयारी हो रही है। इन दोनों मामलों पर विचार-विमर्श के लिए इस हफ्ते लेबर पैनल बड़ी चर्चा करेगा। इस पैनल का गठन पिछले महीने हुआ है। पैनल की बैठक 28 सितंबर को होगी। इस बैठक में पैनल EPFO के तहत 10 खरब रुपए के कोष का प्रबंधन, प्रदर्शन और निवेश पर मंथन करेगा।
बता दें कि इस पैनल में विचार होगा, कि EPFO को संगठित और असंगठित सेक्टर में काम करने वालों के लिए ज्यादा फायदेमंद कैसे बनाया जाए। इसके साथ ही पैनल आकलन करेगा कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते EPFO कोष पर पड़ने वाले प्रभाव का भी आकलन करेगा। वहीं, इस बैठक में पेंशन को बढ़ाने का फैसला भी लिया जा सकता है। बुधवार को होने वाली बैठक में पेंशन योजना के तहत पेंशन बढ़ाने और खाताधारक की मृत्यु के मामले में परिवारों को मिलने वाली राशि की उपलब्धता सुनिश्चत करने पर भी चर्चा होगी। EPS योजना के तहत न्यूनतम पेंशन को बढ़ाकर 5,000 रुपए मासिक भुगतान करने पर भी विचार होगा।
बता दें कि कर्मचारी भविष्य निधि पर वर्ष 2019-20 के लिए 8.5 प्रतिशत ब्याज तय किया गया है ये ब्याज पिछले पांच साल वित्तीय वर्षों में सबसे कम है। ऐसे में इसे भी बढ़ाने की तैयारी हो रही है। पैनल की जिम्मेदारी है कि अगले वित्तीय वर्ष में ज्यादा ब्याज दिला सके। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए ब्याज दर दिसंबर अंत या जनवरी में तय होगी। उससे पहले पैनल की सिफारिशों के आधार पर इसे तय किया जा सकता है। वही, अब पैनल बैठक के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट संसद को शीतकालीन सत्र में सौपेंगी।