उत्तर प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए 3 नवंबर को मतदान होना है और 10 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे. बता दें कि यह उपचुनाव 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल है. लिहाजा सभी पार्टियां दमखम के साथ मैदान में हैं. उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर उपचुनाव रेप केस में सजा काट रहे कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता रद्द होने की वजह से हो रहा है. 2017 में कुलदीप सिंह सेंगर बीजेपी के टिकट पर जीते थे. यह सीट बीजेपी के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि 50 साल बाद 2017 के चुनाव में कुलदीप सिंह सेंगर ने यह सीट बीजेपी की झोली में डाली थी. इससे पहले 2007 में सपा से कुलदीप सिंह सेंगर जीते थे. वहीं इस सीट पर सपा, बीएसपी और कांग्रेस भी पूर्व में चुनाव जीत चुकी हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक इस सीट पर आधी आबादी यानी महिला प्रत्याशी की जीत नहीं हुई है. वहीं इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी मतदाता ज्यादा हैं, जो प्रत्याशी की किस्मत तय करते हैं.
ये प्रत्याशी मैदान में
अगर उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर पार्टी प्रत्याशियों की बात करें तो कांग्रेस ने अपनी पूर्व प्रत्याशी आरती बाजपेई पर तीसरी बार भरोसा जताया है. आरती बाजपेई यूपी में गृहमंत्री रह चुके गोपीनाथ दीक्षित की पुत्री हैं. आरती बाजपेई पहले से ही डोर टू डोर कैम्पेन कर रही हैं. वहीं बीजेपी ने अपने पूर्व जिलाध्यक्ष श्रीकांत कटियार को अपना प्रत्याशी बनाया है. सपा ने सुरेश पाल तो बसपा से महेश पाल ताल ठोक रहे हैं.
बांगरमऊ विधानसभा सीट की खासियत
बांगरमऊ सीट की अपनी पहचान हैं. लखनऊ-कानपुर-हरदोई तीन जनपदों से सटी बांगरमऊ विधानसभा कृषि यंत्र के लिये क्षेत्र में ही नहीं आस पास के जिलों में भी विख्यात हैं. दूर-दूर से किसान कृषि यंत्र खरीदने के लिए यहां आते हैं.जनपद का एकमात्र पुलिस ट्रेनिंग सेंटर बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र के काली मिट्टी में स्थापित किया गया है. इसके साथ ही जनपद का एकमात्र नवोदय विद्यालय होने का सौभाग्य भी बांगरमऊ विधानसभा को ही मिला है. फ्लोर मिल और राइस मिल के साथ काफी बड़ी गल्लामंडी भी संचालित है. इस गल्ला मंडी में आस पास के जिलों के भी लोग व्यापार करने के दृष्टिकोण से आते हैं. एक मायने में देखा जाए तो बांगरमऊ विधानसभा जनपद की व्यवसायिक व आर्थिक गतिविधियों वाला केंद्र है.
क्या है बांगरमऊ विधानसभा सीट का इतिहास?
उन्नाव जिले की बांगरमऊ विधानसभा से रेप कांड में दोषी करार दिये गये बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की विधायकी जाने से ये सीट खाली हुई थी. 1967 में ही जनसंघ ने ये सीट जीती थी. लेकिन बीजेपी को इसे जीतने में 50 साल लग गये. और किस्मत देखिये कि 2017 में मिली पहली जीत को बीजेपी पूरे पांच साल भी संभाल नहीं पायी. इस सीट का इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि ये सीट ऐसी रही है जहां हमेशा राजनीति बदलती रही है. यहां की जनता ने न तो किसी कैण्डिडेट को और न ही किसी पार्टी को अपने सिर पर बैठाया. अमूमन हर चुनाव में ताज बदलता रहा. वहीं इसमें कोई दो राय नहीं कि इस हलके में कुलदीप सिंह सेंगर एक बड़ी राजनीतिक शक्ति रहे हैं. इस सीट पर सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने का रिकार्ड उनके नाम रहा है. फिर भी इस सीट के वोटरों ने सभी पार्टियों को सेवा का मौका दिया है. 1962 से अब तक कांग्रेस पांच बार, सपा तीन बार, बसपा दो बार और भाजपा एक बार इस सीट से विजयी रही है. बीच में दूसरी पार्टियों जैसे जनता दल, जनता पार्टी और भारतीय क्रान्ति दल को भी मौका मिला.