दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले के बहाने कई परतें अब ऐसी खुल चुकी है, जिसको अब गहन तफ्तीश की दरकार है। यकीनन अगर ऐसा न हुआ तो स्थिति आगामी दिनों में संजीदा हो सकती है। यह अब समय की दरकार है की ऐसी मानसिकता और भावनाओं पर अंकुश लगाया जाए नहीं तो फिर हमें भयावह दिनों के इंताजर में बैठ जाना चाहिए। इन भावनाओं और मानसिकता से पीड़ित हुए अभिनेता और राजनीतिज्ञ रविकिशन ने एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुशांत सिंह मामल की जांच को सीबीआई को सौंपे जाने पर इसे भारत के नौजवानों की जीत बताई है तो दूसरी तरफ मुंबई सहित पूरे फिल्म इंडस्ट्री की पोल भी खोलकर रख दी है।
छलका रविकिशन का दर्द
मीडिया से मुखातिब होने के क्रम में मुंबई की भयावह हो रही उस मानसिकता का खुलासा उन्होंने देश के चौथे स्तंंभ के सामने बेहद बेबाकी से किया है, जिस पर निसंदेह चिंतन-मंथन करने की दरकार है अन्यथा हमें अति भयावह होती मानसिकता से रूबरू होने के लिए अमादा होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मुंबई में बिहार और यूपी के लोगों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। उन्हें भैया कहकर संबोधित किया जाता है। इस दौरान उन्होंने खुद के साथ हुए रवैये का जिक्र करते हुए कहा कि वे खुद एक गरीब परिवार से होने के बावजूद मायानगरी मुंबई में अपना और अपने माता पिता का ख्वाब पूरा करने के लिए गए थे तो उन्हें भैया जी कहकर पुकारा जाता था। यहां पर ध्यान देन वाला तथ्य है कि वहां इस शब्द का इस्तेमाल एक विशेष राज्य से आने वाले लोगों के लिए क्यों किया जाता है। आखिर उनकी ऐसी मानसिकता के पीछे ध्येय क्या है, जिसे वो धरातल पर उतारना चाहते हैं।
वहीं, सुशांत सिंह मामले के संदर्भ में मिली सीबीआई जांच की अनुमति पर उन्होंने कहा कि यह समस्त देश के नौजवानों की जीत है। यह जीत है..उन युवाओं की जो यूपी बिहार सहित देश के अन्य सूबों से मायानगरी मुंबई में अपने ऊंचे ख्वाबों को पूरा करने जाते हैं। उन्होंने कहा कि सुशांत सिंह मामले की जांच होनी चाहिए। यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है। एक चमकता हुआ सितारा हम सबके बीच से चला गया। आखिर कौन है इसका जिम्मेदार। इसकी तो गहन तफ्तीश होनी चाहिए।
अपना नाम तक बदलना पड़ा था
हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि आप इसका अंदाजा महज इसी से लगा सकते हैं कि रविकिशन को मुंबई में अपना करियर बनाने के लिए अपना सरनेम तक बदलना पड़ा था। उनका सरनेम शुक्ला था जिसको उन्हें अपना करियर बनाने के लिए दांव पर लगाना पड़ गया था। इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि मुंबई में वंश-वाद किस हद तक अपने चरम पर पहुंच चुका है। यहीं नहीं, इसके बाद रविकिशन अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि मुझे अपना नाम बदलने के लिए बाध्य होना पड़ा था, चूंकि मुझे अपने ख्वाब पूरे करने थे।