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देवबंद: रामलीला में विभीषण शरणागत, रामेश्वरम की स्थापना, प्रस्त का राजद्रोह,अंगद-रावण संवाद का मंचन किया गया

रिपोर्ट- गौरव सिंघल,विशेष संवाददाता,दैनिक संवाद,सहारनपुर मंडल,उप्र:।।
देवबंद (दैनिक संवाद न्यूज)। श्री विष्णु कला मंडल द्वारा रामलीला भवन पर आयोजित रामलीला में बीती रात विभीषण रावण को राम जी से बैर ना करने को बोलता है और रावण को समझता है पर रावण अपने घमंड में विभीषण की नहीं सुनता। बल्कि उसको राम का हितैषी समझकर लंका से निकल देता है। लंका से निकलने के बाद विभीषण श्री राम जी के पास चले जाते है। हनुमान जी श्री राम जी को विभीषण के बारे में बताते है की यह आप का भक्त है। राम जी उसको अपनी शरण में ले लेते है। और अगले दिन श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव और सेना सहित समुद्र तट पर आते है और समुंद्र देव से मार्ग मांगते है परंतु बार-बार विनती करने पर जब समुद्र देव रास्ता नहीं देते तब राम अग्नि अस्त्र का उपयोग करते है और तब डर से समुंद्र देव प्रकट होकर अपनी गलती से क्षमा मांगे है और नल- नील के बारे बताते है की वे दोनो शिल्प कला में गुडी है उनसे शिला मंगवाए और उसपर अपना नाम लिखवाए तब वे पत्थर तहरने लगेंगे।
तब श्री राम नल और नील को पुल बदने की आज्ञा देते है और समुद्र किनारे भगवान राम एक शिवलिंग का निर्माण करते है जिसको बाद में रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। प्रभु राम शिव जी की एक बहुत सुंदर स्तुती करते है। और फिर उस पुल को पार करके वह एक बार फिर रावण को समझाने के लिए अंगद को भेजते है। रावण के दरबार जब रावण को पता चलता हैं कि रामादल ने समुद्र पर पुल बना लिए तब वह सोच विचार करता हैं और रावण की सेना रावण को अपनी शक्ति के बारे में बताती हैं और रावण को निर्भय होकर राज करने को बोलती है तभी रावण का पुत्र प्रस्त उनकी बाते सुनकर क्रोध में आ जाता हैं। और उनको धमकाता है तब रावण उसे साफ और सीधी बात बोलने को कहता है और तब प्रस्त रावण से कहता की आप दरबारियों की चुपड़ी बातों में न आए। तब रावण उसे पूछता है कि हमे क्या करना चाहिए तब प्रस्त कहता है की जानकी को लौटाकर निश्चिंत राज करना चाहिए और रावण को समझता रहता है तब रावण क्रोध में आकर प्रस्त को तरबार से निकल देता है। और दरबारी लोग रावण की जय जय कर करने लगते है।
उसके जाते ही अंगद चलते दरबार में आता है और रावण से संवाद करने लगता है। तब रावण उससे पूछता है कि तू कौन है तब अंगद बतलाता है की वह बाली का पुत्र और राम का दूत है। रावण जब उससे आने का कारण पूछता है तो वह बतलाता है की मै एक दूत बनकर तुझे समझने आया हूं, और राम का संदेश लाया हूं। कि तुम्हारा कुल श्रेष्ठ है और तू वेदों के ज्ञाता होकर नीच कर्म किया है तब रावण उस पर क्रोधित होता है और उससे पूछता कि तुम्हारे यहां कौन सा योद्धा है जिसे देखो वही कमजोर है तब अंगद अपनी ताकत दिखाता है और अपना पैर जमीन पर जमाता है और लंकेश को कहता है कि तेरा जो कोई योध्या अगर इसे उठाता है तो वह जानकी को हर जाता है तब सभी योद्धा अपना जोर लगते है परंतु अंगद के पैर को नहीं हिला पाते तब रावण खुद जाता है परंतु अंगद रावण को आते देख पैर पीछे हटाता है और उससे कहता है कि मेरे पैर छूने की जगह प्रभु के पैर छूले तेरा उद्धार होगा। नहीं तो अब युद्ध का ऐलान है और ऐसा कहकर वहां से चला जाता है। और वापस आकर राम जी को सारा वार्तात सुनाता है और वहा पर सब अंगद की जय जय कर करते है।