पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख की नियुक्ति को लेकर अनिश्चितता के बादल बुधवार को साफ होने लगे हैं. जब सरकार ने बुधवार को घोषणा की कि उसे मौजूदा जनरल कमर जावेद बाजवा के उत्तराधिकारी के पद के लिए छह वरिष्ठ जनरलों के नाम प्राप्त हुए हैं. 61 वर्षीय जनरल बाजवा तीन साल के सेवा काल के विस्तार के बाद 29 नवंबर को रिटायर्ड होने वाले हैं.
बता दें कि उन्होंने एक और सेवा काल की बढ़ोतरी की मांग से इनकार कर दिया है. प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने ट्विटर पर एक संक्षिप्त बयान जारी कर बताया कि उन्हें नए सेनाध्यक्ष (COAS) और अध्यक्ष संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (CJCSC) की नियुक्ति के लिए रक्षा मंत्रालय से ब्योरा प्राप्त हुआ. बयान के अनुसार, “प्रधानमंत्री निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार नियुक्तियों पर निर्णय लेंगे.”सेना ने यह भी पुष्टि की कि उसने नियुक्तियों के लिए 6 शीर्ष लेफ्टिनेंट जनरलों के नाम भेजे गए थे.
हालांकि इसमें नामों का जिक्र नहीं था, लेकिन माना जा रहा है कि छह लोगों में लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर (वर्तमान में क्वार्टर मास्टर जनरल), लेफ्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्जा (कमांडर 10 कॉर्प्स), लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास (चीफ ऑफ जनरल स्टाफ), लेफ्टिनेंट जनरल नौमन महमूद (राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष), लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद (कमांडर बहावलपुर कॉर्प्स) और लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद आमिर (कमांडर गुजरांवाला कॉर्प्स) शामिल हैं. नामों में से दो को 29 नवंबर से पहले सीओएएस और सीजेसीएससी के पदों पर नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ द्वारा चुना जाएगा. प्रधानमंत्री शरीफ राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को नियुक्तियों के नामों के बारे में सूचित करेंगे.
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने सोमवार को कहा कि अगले सेना प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया 25 नवंबर तक पूरी कर ली जाएगी. बता दें कि सोमवार को जनरल बाजवा ने अपनी विदाई यात्रा के तहत इस्लामाबाद में नौसेना और वायु मुख्यालय का दौरा किया. उन्होंने रावलपिंडी कोर मुख्यालय का भी दौरा किया और शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की.
पाकिस्तानी सशस्त्र बलों में CJCS पदानुक्रम में सर्वोच्च है, लेकिन सैनिकों की तैनाती, नियुक्तियों और स्थानांतरण सहित प्रमुख शक्तियां थल सेनाध्यक्ष के पास होती हैं, जो इस पद को धारण करने वाले व्यक्ति को सेना में सबसे शक्तिशाली बनाता है. बता दें कि पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में आधे से अधिक समय तक सैन्य शासन रहा है. वहां सेना हमेशा से सुरक्षा और विदेश नीति के मामलों में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करती आयी है.