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97 शहरों में भूकंप आने से 8 लाख से ज्यादा लोगों ने कह दिया दुनियां को अलविदा, कोसों तक मची थी तबाही

World’s Deadliest Earthquake: प्राकृतिक आपदाएं (Natural Disasters) कई बार इतनी घातक होती हैं, कि वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भविष्य में आने वाली पीढ़ी के जहन में भी अपनी जगह बना लेती हैं. इस तरह की घटनाओं में भूकंप (Earthquake), सुनामी (Tsunami), जंगलों में आग लगना (Forest Fire) और बाढ़ (Flood) आना शामिल है. ऐसा ही कुछ आज यानी 23 जनवरी के दिन भी साल 1556 में चीन के सांक्सी प्रांत में देखने को मिला था.

यहां आया भूकंप दुनिया का सबसे खतरनाक भूकंप माना जाता है. जिसने आठ लाख से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 8 मापी गई थी और इसने 520 मील दूर तक के इलाकों में तबाही मचाई थी. भूकंप का असर सांक्सी प्रांत की करीब 97 काउंटीज में देखा गया था. भूकंप के कारण भूस्खलन भी आया था. 60 फीसदी तक लोगों ने गंवाई जान ये भूकंप 23 जनवरी को सुबह के समय आया था. जिससे 97 काउंटीज प्रभावित हुईं, इनमें हुबेई, हेनान, गांसू, शानडोग और हुनान शामिल हैं. बीजिंग, शंघाई और अनहुई में इमारतों को काफी नुकसान पहुंचा था. कई काउंटीज में तो वहां रहने वाले 60 फीसदी तक लोगों की मौत हो गई थी. बहुत से लोग तब पत्थरों के घर बनाकर रहा करते थे, जो भूकंप के कारण टूट गए थे. इनमें दबने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी.

जमीन पर 66 फीट की गहरी खाई बनीं

भूकंप का केंद्र सांक्सी प्रांत में वेई नदी घाटी पर था. हुआक्सी में हर इमारत हर घर को क्षति पहुंची थी. जिसमें शहर के आधे से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. ऐसा कहा जाता है कि इस भूकंप में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. इतिहासकार कहते हैं कि भूकंप इतना खौफनाक था कि जमीन पर 66 फीट तक की गहरी खाई बन गई थीं. हर जगह केवल तबाही ही नजर आ रही थी. भूकंप के बाद आधे साल तक महीने में कई बार इसके झटके महसूस होते रहे.

नदी-पहाड़ों ने अपना स्थान बदला

भूकंप से सड़कों को नुकसान हुआ और नदी-पहाड़ों ने अपना स्थान बदल लिया. कुछ इलाकों में पानी भर गया तो कुछ में मलबे का पहाड़ बन गया. कुछ स्थानों पर आगजनी भी हुई. जंगलों को भी इस दौरान क्षति पहुंची. भूकंप से इतना नुकसान हुआ था कि इसका अंदाजा लगाना आज तक नामुमकिन है. भूकंप के समय जीवित एक स्कोलर कीन केडा और रिकॉर्ड्स के अनुसार, ‘जब भूकंप आया तो शुरुआत में लोग घरों में बंद थे और तुरंत बाहर नहीं निकले. वो बस नीचे झुककर इंतजार कर रहे थे भूकंप के जाने का. लेकिन फिर हवा की गति और पानी का बहाव तेज होता गया.’