रामनगरी अयोध्या (Ramnagari Ayodhya) में श्रीरामजन्मभूमि (Sri Ram Janmabhoomi) पर बन रहे भव्य राममंदिर (grand Ram temple ) में हर रामनवमी (Ram Navami) पर रामलला का सूर्याभिषेक (Surya Abhishek of Ramlala) का भी श्रद्धालुओं को विशेष तौर पर इंतजार है। 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अगले वर्ष रामनवमी को सूर्याभिषेक के दुर्लभ दर्शन नहीं हो पाएंगे। इसके लिए शिखर तक का निर्माण पूरा होना आवश्यक है।
शिखर तक का निर्माण अगले वर्ष दिसंबर तक पूरा हो पाएगा। उसके बाद शिखर व ऊपरी तल पर विशेष झरोखे का निर्माण भी किया जाएगा। इसी झरोखे से सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करेंगी। इन्हीं किरणों को वैज्ञानिकों की टीम विशेष एंगल पर सेट किए गए दर्पण से परावर्तित कराकर दुर्लभ सूर्याभिषेक का दर्शन रामभक्तों को कराएंगे लेकिन इसके लिए रामभक्तों को 2025 की रामनवमी तक इंतजार करना पड़ेगा।
कमल दल पर विराजे 51 इंच ऊंचे रामलला तक पहुंचेंगी किरणें
राममंदिर के भूतल के गर्भगृह में आठ फिट ऊंचे रामलला के माथे पर सूर्यकिरणें पहुंचे इसके लिए वैज्ञानिकों ने कई बार कैलकुलेशन किया है। इस आठ फिट में 51 इंच का रामलला का विग्रह व एक कमल दल स्वरूप का आधार शामिल है। कमल दल के पेडस्टल पर 51 इंच ऊंचे रामलला के चार पांच वर्षीय रामलला के माथे पर सूर्य की किरणों से अभिषेक का दृष्य बेहद दुर्लभ होगा।
मंडप से लगभग 35 फिट की दूरी से सिर्फ रामनवमी को ही दोपहर 12 बजे कुछ मिनटों के लिए श्रद्धालु इसका दर्शन पा सकेंगे। दोपहर 12 बजे सूर्याभिषेक की वजह भगवान राम के जन्म के समय की मान्यता के चलते तय किया गया है।
देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के वैज्ञानिक कर रहे काम
इस सूर्याभिषेक के लिए देश के शीर्ष संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम काम कर रही है। सीएसआईआर, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीटयूट, इंडियन इंस्टीटयूट आफ एस्ट्रो फिजिक्स व देश के कई शीर्षस्थ संस्थानों के वैज्ञानिकों ने रामनवमी के दिन मंदिर के पास सूर्य की पोजिशन एंगल आदि पर कई बार भौतिक रूप से मौके पर पहुंच कर काम कर चुकी हैं।
वैज्ञानिकों की टीम लगातार चंद्र व सूर्य कैलेंडर के आधार पर सूर्य की स्थिति की गणना में जुटे हैं। यहां से जुटाए गए तथ्यों के आधार पर कैलकुलेश कर इस बड़े काम को अंजाम देने की तैयारी में है। हालांकि 22 जनवरी 2024 में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा एवं दिसंबर 2024 तक शिखर का निर्माण पूरा होने के बाद इस प्रयोग को दोबारा करके शीशों के सही स्थान पर लगाए जाने की चुनौती अभी बाकी है।