मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व श्रद्धालु इस बार दो दिन मना सकेंगे। 14 जनवरी को सूर्य (Sun) का मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश रात आठ बजकर 49 मिनट पर हो रहा है। इसका पुण्यकाल अगले दिन (15 जनवरी) को दोपहर 12:49 बजे तक रहेगा। ऐसे में मकर संक्रांति 14 और 15 जनवरी दोनों की दिन मनाई जा सकेगी।
वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति के समय रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र का योग है। संक्रांति के समय ब्रह्म योग और बालव करण है। यह संक्रांति चंद्रमा के वृषभ राशि में घटित हो रहा है। इस दिन मित्र नामक महाऔदायिक योग भी है।
ज्योतिषाचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्रा ने बताया कि मेदिनीय संहिता के अनुसार, यदि मेष, वृषभ, कर्क, मकर और मीन राशि में संक्रांतियां होती हैं, तो वे सुखदायक होती हैं। इस वर्ष मकर संक्रांति वृषभ राशि में घटित होने से सुखदायक रहेगी। बालव करण में होने से बैठी अवस्था में प्रवेश कर रही है। फलप्रदीप मे कहा गया है कि यदि संक्रांति का बैठे अवस्था में प्रवेश होता है, तो धन-धान्य की वृद्धि, आरोग्यता से संसार में प्रसन्नता एवं समस्त कार्यों में समता बनी रहेगी। वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि नहीं होगी।
संक्रांति का प्रवेश रात में हो रहा है। इसलिए उत्तम माहौल बना रहेगा। मृगशिरा नक्षत्र में होने से ‘मंदाकिनी’ संज्ञा रहेगी। यह क्षत्रियों (सैन्य बलों और सैनिकों) के लिए अनुकूल एवं शुक्रवार को होने से पशुओं को आरोग्यता प्रदान करने वाली और भारवाहकों के लिए सुख प्रदान करने वाली होगी।
मकर संक्रांति का महत्व
ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, हिंदू धर्म में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देव कहा गया है। जो प्रतिदिन साक्षात दर्शन देकर सारे जगत में ऊर्जा का संचार करते हैं। ज्योतिष में सूर्य को नवग्रहों का स्वामी माना जाता है। मान्यता है कि सूर्य अपनी नियमित गति से राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य के इसी राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। इस तरह साल में 12 संक्रांति तिथियां पड़ती हैं। जिनमें से मकर संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण है। मकर संक्रांति को उत्तर भारत में खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है।
सूर्य को ऐसे दें अर्घ्य
ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार, मकर संक्रांति पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान करके एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर उसमें रोली, अक्षत, लाल पुष्प तथा तिल और गुड़ मिलाकर पूर्वाभिमुख खड़े होकर, दोनों हाथों को ऊपर उठाकर सूर्यदेव को श्रद्धापूर्वक गायत्री मंत्र या ‘ऊॅ घृणि सूर्याय नम: श्री सूर्य नारायणाय अर्घ्यं समर्पयामि।’ मंत्र के साथ अर्घ्य दें।
तिल का है विशेष महत्व
ज्योतिषाचार्य पंडित बृजेश पांडेय के अनुसार, मकर संक्रांति में तिल का विशेष महत्व है। इस दिन पुण्यकाल में तिल के तेल की मालिश, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल का हवन, तिल से तर्पण, श्वेत तिल युक्त वस्तुओं का दान एवं सेवन करने से पूर्वजन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। धर्मसिंधु के अनुसार, श्वेत तिल से देवताओं का तथा काले तिल से पितरों का तर्पण करना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव के मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।