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‘लू’ की चपेट में आए आर्कटिक और अंटार्कटिक, गर्मी से परेशान हो गए वैज्ञानिक

आर्कटिक (Arctic) और अंटार्कटिक (Antarctic) में अचानक तापमान बढ़ गया है. वहां पर हीटवेव (Heatwave) चल रही है. जो कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है. खतरनाक है. अगर इसी तरह से दोनों ध्रुवों (Poles) का तापमान बढ़ता रहेगा, पूरी दुनिया में भयानक प्राकृतिक आपदाएं आएंगी. स्थानीय जलवायु में अद्भुत स्तर का भयावह परिवर्तन होगा.


पिछले हफ्ते के अंत में अंटार्कटिक में तापमान सामान्य से 40 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच गया था. हालांकि यह तापमान कुछ जगहों पर देखने को मिला. सभी जगहों पर नहीं. ठीक उसी समय उत्तरी ध्रुव या आर्कटिक में भी बर्फ में तेजी से पिघलाव दर्ज किया गया. वहां पर सामान्य से 30 डिग्री सेल्सियस ऊपर तापमान था. अगर मार्च के महीने में ही यह हाल है, तो गर्मियों के मौसम में दोनों ध्रुवों पर भयानक लू चलने की आशंका है.

मार्च के महीने में अंटार्कटिक में तेजी से कूलिंग इफेक्ट शुरु होना चाहिए, क्योंकि वह अपनी गर्मियों के मौसम से बाहर आना चाहता है. वहीं, आर्कटिक में गर्मियां बढ़ने लगती हैं. उत्तरी ध्रुव दिनों की बढ़ती लंबाई के साथ गर्म होने लगता है. पिघलने लगता है. लेकिन दोनों की इन प्रक्रियाओं में काफी ज्यादा समय का अंतर होता है. इस बार ये दोनों ही घटनाएं एकसाथ देखने को मिली, जिससे जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने वाले साइंटिस्ट परेशान हैं.

दोनों ध्रुवों (Earth’s Poles) पर तेजी से हो रहे तापमान के बदलाव का खतरनाक असर पूरी धरती के जलवायु प्रणाली पर पड़ेगा. पिछले साल इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अगर दोनों ध्रुवों पर गर्मी लगातार बढ़ती रहेगी, तो यह पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी साबित होगा. क्योंकि ध्रुवों का पिघलना बदला नहीं जा सकता. इस प्रक्रिया को पलटा भी नहीं जा सकता.

आर्कटिक (Arctic) और अंटार्कटिक (Antarctic) पर लगातार बढ़ रहे तापमान से दो तरफा नुकसान होगा. पहला- इंसानों द्वारा जलवायु पर किए गए अत्याचारों का खामियाजा भुगतना होगा. दूसरा- ध्रुवों पर जमा बर्फ के पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ेगा. कई देश, द्वीप और राज्य जलमग्न हो जाएंगे. सूरज की रोशनी को वापस भेजने वाली बर्फ की चादरें खत्म हो जाएंगी. गर्मी बढ़ेगी. समुद्र और जमीन दोनों पर जीवन मुश्किल होता चला जाएगा.

पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थ सिस्टम साइंस सेंटर के डायरेक्टर माइकल मान ने कहा कि अगर दोनों ध्रुवों पर इसी तरह से गर्मी बढ़ती रही तो तबाही ‘ऐतिहासिक’, ‘अचानक’ और अत्यधिक हैरान करने वाली होगी. दुनियाभर के मौसमों में ऐसे परिवर्तन आएंगे, जो कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा. इसलिए पूरी दुनिया को चाहिए कि एकसाथ मिलकर इस तरफ ध्यान दें, ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज को कम करने में मदद करें.

आपको अगर याद हो तो पिछली साल ऐसी ही अचानक से आई आपदा का शिकार अमेरिका हुआ था. जब अमेरिका के पैसिफिक नॉर्थ-वेस्ट में लगतार हीटवेव की वजह से कई राज्यों में आपदाएं आई थीं. कैलिफोर्निया और कनाडा के कई गांव गर्मी से जल गए थे. तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के ऊपर तक पहुंच गया था. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अर्थ साइंस सिस्टम के प्रोफेसर मार्क मसलिन ने कहा कि हम दोनों ध्रुवों पर बढ़े हुए तापमान की स्टडी करते समय हैरान रह गए.

मार्क मसलिन ने कहा कि पिछली साल स्टडी करते समय भी हमने यह देखा था कि अमेरिका में अचानक से आई हीटवेव वाली आपदा के दौरान जमीन और हवा का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. अब हमारे पास आर्कटिक और अंटार्कटिक का डेटा है, जो बेहद ज्यादा डराने वाला है.

अंटार्कटिका में 3234 मीटर ऊपर स्थित कॉन्कॉर्डिया स्टेशन पर तापमान माइनस 12.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. जो कि औसत से 40 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है. वहीं, आर्कटिक स्थित वोस्तोक स्टेशन पर तापमान माइनस 17.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो औसत से 15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है. अंटार्कटिका के तटीय टेरा नोवा बेस पर तापमान 7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. जो कि फ्रीजिंग प्वाइंट से बहुत ऊपर है. आमतौर पर इस महीने में यहां पर तापमान माइनस में होता है.
अंटार्कटिक ने पिछली गर्मियों में सबसे ज्यादा बर्फ पिघलने का रिकॉर्ड बनाया है. जो कि इससे पहले 1979 में बना था. इस बार अंटार्कटिक में 19 लाख वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघली है. वहीं, आर्कटिक बाकी दुनिया के मुकाबले 2 से 3 गुना ज्यादा गर्म हुआ है. यानी दोनों ही ध्रुव जलवायु परिवर्तिन को लेकर संवेदनशील हैं.