लेखक :- सुरेंद्र सिंघल, राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार.
लखनऊ। मुख्यमंत्री के अपने दूसरे कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ की पारी ज्यादा सधी हुई दिखती है। बढ़े आत्म विश्वास के साथ निर्णय लेने में भी उन्मुक्तता और स्पष्टता साफ झलकती है। प्रदेश के पूर्व में रहे कई ताकतवर मुख्यमंत्रियों की झलक योगी आदित्यनाथ में दिखने लगी है। गोविन्द वल्लभ पंत, चंद्रभानु गुप्त और हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने जमाने में बतौर मुख्यमंत्री अपना जो मुकाम बनाया था उसका लोहा प्रदेश में ही नहीं देशभर में महसूस किया जाता था। योगी आदित्यनाथ आज उसी स्थिति में खड़े हो गए हैं। उनसे ज्यादा ताकत और लोकप्रियता वाला कोई मुख्यमंत्री आज देश के किसी भी प्रांत में नहीं है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का स्थान भी योगी के बाद आता है। भाजपा और देश दोनों में योगी आदित्यनाथ की गिनती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एकदम बाद आती है। जाहिर है देश में एक वैकल्पिक नेतृत्व मौजूद है। किसी भी बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए यह स्थिति बहुत अनुकूल कही जाएगी।
अपने पहले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ ने अपनी बेहतरीन कार्यकुशलता से प्रदेश के राजकाज को चलाया और लोगों का दिल जीता। फिर भाजपा ने 2022 का उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे और सुशासन पर लड़ा और आराज से जीता भी। भाजपा ने 255 और सहयोगी दलों को 18 सीटें मिलीं। योगी आदित्यनाथ की दूसरी बड़ी उपलब्धि 100 सदस्यीय विधान परिषद में 66 सदस्यों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल करने की रही। हाल ही में संपन्न हुए विधान परिषद चुनावों में भाजपा ने 36 में से 33 सीटें जीती हैं। मंत्रिमंडल के गठन में योगी आदित्यनाथ का प्रभाव भी स्पष्ट दिखता हैं। केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक को भले ही उप मुख्यमंत्री बनाया गया है लेकिन मंत्रिमंडल में धाक योगी समर्थक स्वतंत्र देव सिंह की ही है। केशव प्रसाद मौर्य सिराथू सीट से विधान सभा चुनाव हार गए थे।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और स्वतंत्र देव सिंह दोनों उनके चुनाव प्रचार से दूर रहे थे। बृजेश पाठक ने पिछले वर्ष अप्रैल 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य विभाग की आलोचना की थी और 12 अप्रैल को तत्कालीन अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य एवं प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को पत्र लिखकर इस महकमे की कड़ी आलोचना की थी। मुख्यमंत्री ने इस बार उन्हें वही मंत्रालय दिया है। पिछली सरकार में केशव प्रसाद मौर्य के पास लोक निर्माण जैसा महत्वपूर्ण विभाग था। अबकी उन्हें कम महत्व का ग्राम्य विकास विभाग दिया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अबकी सधे कदमों से अपने कार्यकाल की शुरूआत की है और अपने मंत्रियों को बेहतर नतीजे देने के लिए निर्देशित किया है। प्रत्येक मंत्री हफ्ते में चार रोज लखनऊ रहकर अपने विभाग का कामकाज देखेगा और अपने समक्ष आई फाइलों का तेजी के साथ निपटारा करेगा। यही अपेक्षा नौकरशाही से भी की गई है।
मुख्यमंत्री की अपेक्षा है कि उनके मंत्रिगण सौ दिन के भीतर ही अपनी कार्यकुशलता का बेहतर नमूना पेश करें। ताकि प्रदेश की जनता को स्पष्ट संदेश जाए कि उसने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर मोहर लगाकर कोई गलती नहीं की है। प्रदेश की जनता भी बेहतर नतीजे पाने को बेताब है। योगी आदित्यनाथ ने अपनी 52 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में अबकी 31 नए चेहरों को मौका दिया है। जिन पर जन आकांक्षाओं को पूरा करने की बड़ी जिम्मेदारी हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं जो 2024 के लोक सभा चुनाव में मनमाफिक नतीजे दे सके और नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश की ताकत पर आराम से तीसरी बार प्रधानमंत्री बन सकें। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इस बार अखिलेश यादव ने अपने सहयोगी दलों के साथ 125 सीटें लेकर विपक्ष की ताकत दिखाई है। लोक सभा चुनाव में भी इस बार भाजपा का सीधा मुकाबला सपा से ही होना तय है। कांग्रेस और बसपा जैसी दो बड़ी पार्टियों के उत्तर प्रदेश में अप्रासंगिक हो जाने से उत्तर प्रदेश की सियासत दो ध्रुर्वीय हो गई है। भाजपा सीधे मुकाबले में आ गई है। जो अपने आपमें बेहद रोचक बात है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सीधे और तनकर चलने के क्या सियासी प्रभाव होंगे यह तो लोक सभा चुनाव के नतीजे बता पाएंगे लेकिन प्रदेश की जनता उनकी शैली से प्रभावित अवश्य है।