महाराष्ट्र (Maharashtra) में सियासी उठापटक में बीते एक साल से विरोधी खेमे पर भारी पड़ रही भाजपा (BJP) अब लोकसभा चुनावों (Lok Sabha elections) में जनता के समर्थन के लिए सामाजिक समीकरण साधने में जुट गई है। पार्टी की नजर एक बार फिर चार दशक पुराने ‘माधव’ फॉर्मूले पर है, जिसके सहारे उसने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी जड़ें जमाईं थीं। माधव यानी माली, धनगर और वंजारा। गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद भाजपा का यह फॉर्मूला कमजोर पड़ा है.
महाराष्ट्र में आने वाला एक साल चुनावी दृष्टि से अहम है। पहले लोकसभा और उसके छह महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। दो गठबंधनों की लड़ाई में भाजपा का खेमा दो बड़े दलों की टूटने से बना है जबकि विपक्ष के तीन दलों के गठबंधन में अब कांग्रेस सबसे ऊपर है और उसके साथ खड़ी शिवसेना और एनसीपी अपनी टूट के बाद खुद को असली पार्टी साबित करने के लिए जूझ रही है। दोनों ही गठबंधन जमीनी ताकत में बहुत मजबूत नहीं है।
लोकसभा सीटों पर नजर
भाजपा लोकसभा चुनाव में राज्य की 48 सीटों में ज्यादा से ज्यादा हासिल करना चाहती है। पिछली बार उसने शिवसेना के साथ मिलकर 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने और एनसीपी (अजीत पवार) और शिवेसना (शिंदे) को भी मजबूत करने के लिए भाजपा भावी रणनीति पर काम कर रही है। इसमें वह एक बार फिर से माधव (माली, धनगर और वंजारा) पर अपना ध्यान केंद्रित करने जा रही है।
समीकरण साधने की तैयारी
वंजारा समुदाय से आने वाले गोपीनाथ मुंडे ने 80 के दशक में इस फॉर्मूले पर काम किया था। अब मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे और भतीजे धनजंय भाजपा के साथ हैं। पंकजा भाजपा में ही है और राकांपा के धनंजय, अजीत पवार के साथ भाजपा के साथ आ गए हैं। धनकर समाज के लिए भाजपा अहिल्याबाई होलकर को लेकर काफी सक्रिय है। धनगर समुदाय अहिल्याबाई को भगवान की तरह मानता है। अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर करने और बारामती गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज का नाम भी अहिल्या देवी होल्कर के नाम पर करने के पीछे भी यह राजनीतिक समीकरण अहम रहे हैं।
40 से ज्यादा क्षेत्रों में ‘माधव’ की निणार्यक भूमिका
ओबीसी समुदाय से जुड़े माली, धनगर और वंजारा समुदाय काफी प्रभावी हैं। इन समुदायों का आठ जिलों कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, पुणे, अकोला, परभणी, नांदेड़ और यवतमाल में काफी प्रभाव है। लगभग 40 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक वोट हैं और लगभग 100 विधानसभा क्षेत्रों पर इसी समुदाय के लोगों का प्रभाव है।
महाराष्ट्र में 40 फीसदी ओबीसी
महाराष्ट्र में ओबीसी लगभग 356 जातियों में बंटे हैं। साल 1931 में आखिरी बार हुई जातिगत जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी का लगभग 52 फीसदी हिस्सा पिछड़ा वर्ग का था। महाराष्ट्र में लगभग 40 फीसदी आबादी ओबीसी की है। इसमें तेली, माली, लोहार, धनगर, घुमंतु, कुनबी, वंजारा और कुर्मी जैसी जातियां शामिल हैं।