सीएम के मुताबिक, सशस्त्र आतंकवादियों द्वारा एके-47, एम-16 और स्नाइपर राइफलों से लोगों पर गोलीबारी करने के मामले सामने आए हैं. सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई में इन उग्रवादियों पर कार्रवाई की. सीएम ने लोगों से सुरक्षाकर्मियों की आवाजाही में बाधा ना डालने की अपील करते हुए सरकार में विश्वास रखने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि हमने संघर्ष का लंबा दौर देखा है और हम राज्य की जनता को कठिन समय में अकेले नहीं छोड़ेंगे.
हमला सुनियोजित
उन्होंने कहा कि आम लोगों को मारने और संपत्ति को नष्ट करने तथा घरों में आग लगाने में शामिल कई उग्रवादियों को जाट रेजीमेंट ने पकड़ लिया है. सीएम बीरेन सिंह ने कहा कि इंफाल घाटी के आसपास के इलाकों में आम लोगों के घरों पर हिंसक हमलों में जिस तरह तेजी आई है वो सुनियोजित लगती है.उन्होंने कहा, ‘इसकी कड़ी निंदा करता हूं…विशेष रूप से तब, जब राज्य मंत्री नित्यानंद राय मणिपुर में हैं और शांति कायम करने के प्रयास कर रहे हैं.’
विधायक के घर पर हमला
सिंह ने बताया कि अभी तक ऐसे 38 संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जा चुकी है जहां राज्य पुलिस ऑपरेशन चला रही है. एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि पश्चिम इंफाल के उरीपोक में भाजपा विधायक ख्वाइरकपम रघुमणि सिंह के घर में तोड़फोड़ की गई और उनके दो वाहनों में आग लगा दी गई. उन्होंने कहा कि प्रतिद्वंद्वी जातीय उग्रवादी समूहों के साथ-साथ सुरक्षाबलों तथा उग्रवादियों के बीच रविवार को कई जगह झड़पें हुईं.
अधिकारी ने बताया ‘हमारी जानकारी के अनुसार, काकचिंग में सुगनू, चुराचांदपुर में कांगवी, इंफाल पश्चिम में कांगचुप, इंफाल पूर्व में सगोलमंग, बिशेनपुर में नुंगोईपोकपी, इंफाल पश्चिम में खुरखुल और कांगपोकपी में वाईकेपीआई द्वारा गोलीबारी की सूचना मिली है.’ अधिकारी ने बताया कि काकचिंग पुलिस थाने से मेइती समूह द्वारा हथियार लूटे जाने की भी अपुष्ट खबर भी सामने आई हैं.
दो समुदायों की हिंसा से भारी नुकसान
काकचिंग जिले के नपाट, सेरौ और पास के सुगनू में आतंकवादियों ने मैतेई समुदाय के लगभग 80 घरों को जला दिया, जिसके कारण ग्रामीणों को आधी रात को भागना पड़ा. पुलिस ने कहा कि क्षेत्र में तैनात राज्य पुलिस कर्मियों ने जवाबी कार्रवाई की, जिसके बाद भारी गोलीबारी हुई. सुगनू में हुई फायरिंग में एक पुलिस कर्मी की मौत हो गई, जबकि एक अन्य घायल हो गया. सुगनू में 6 और सेरौ में 4 अन्य लोग घायल हो गए. मणिपुर घाटी के पूर्वी क्षेत्र से सशस्त्र उग्रवादी इम्फाल पूर्वी जिले के याईंगंगपोकपी में आए और दो घरों में आग लगा दी तथा ग्रामीणों पर गोलीबारी की.
सेकमाई में हथियारों से लैस उग्रवादियों ने बाहरी गांवों पर हमला किया, जिसके कारण दोनों तरफ से गोलीबारी हुई. बिष्णुपुर जिले में, सशस्त्र कुकी उग्रवादियों ने शनिवार रात फौगकचाओ इखाई, तोरबंग और कांगवई क्षेत्रों में हमला कर दिया, जिसमें मेइती समुदाय के तीस से अधिक घर आग के हवाले कर दिए. हिंसा के बाद प्रशासन ने कर्फ्यू में दी ढील की अवधि को 10 घंटे से घटाकर 6.5 घंटे कर दिया है.
कब से जल रहा है मणिपुर?
– तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.
– इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे.
– तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.
– ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है.
– पिछले महीने मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इसके लिए हाईकोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है.
– मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए. उन्होंने 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला.
मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
– मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.
– राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
– मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
– पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.