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देवबंद : योग गुरू स्वामी शांतनु महाराज ने सन्यास के सम्मोहन में छोड़ दी थी इंजीनियरिंग की नौकरी

रिर्पोट :- सुरेंद्र सिंघल/ गौरव सिंघल,वरिष्ठ संवाददाता, दैनिक संवाद, सहारनपुर मंडल। श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ जैसे धार्मिक स्थल के कारण विख्यात कस्बा देवबंद में सिद्धकुटी पर ध्यान एवं योग और आध्यात्मिक जगत की मशहूर भारतीय हस्ती स्वामी शांतनु जी महाराज तप, साधना, गौ-सेवा, पर्यावरण-संवर्धन और गरीब व असहायों की सेवाश्रुता में दिन-रात सेवारत हैं। शांतनु जी महाराज ऐसे विलक्षण सन्यासी और योगाचार्य हैं जो आर्य समाज और सनातन धर्म के बीच सेतु के अनूठे कार्य में लगे हुए हैं।
उन्होंने पचास वर्ष पूर्व युवा अवस्था में तब सन्यास लेते हुए अपना घर-परिवार छोड़ दिया था जब ओड़िसा में राउरकेला स्टील प्लांट से उन्हें निर्माण और आर्किटेक्टर  इंजीनियरिंग के पद पर ज्वाइनिंग लेटर मिला था। परिवार के इकलौते पुत्र शांतनु के एम.टेक करने के बाद उनके किसान पिता गणेश्वर दास और माता जहान्वी दास की इच्छा अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने, शानदार कैरियर बनाने और उच्च ब्राह्मण घराने में विवाह कराने की थी। लेकिन शांतनु दास भारतीय दर्शन और सन्यास के सम्मोहन के वशीभूत होने के कारण हमेशा के लिए घर छोड़कर तप और साधना की सोच रहे थे। उन्होंने राउरकेला स्टील प्लांट में इंजीनियरिंग की सर्विस ज्वाइन करने से पहले ही माता-पिता से अनुमति मांगी की कि वह संन्यास लेना चाहते हैं और साधना, तपस्या के लिए जाना चाहते हैं। परिवार के लिए ये मुश्किल लम्हें थे। शांतनुदास के दृढ़संकल्प के सामने माता-पिता का प्यार और स्नेह प्रभाव शून्य रहा।
शांतनु दास कई वर्षों विद्वानों, धर्माचार्यों के संगत में रहने के बाद हरिद्वार स्थित गुरूकुल कांगड़ी में पहुंचे जहां उन्होंने नौ विषयों में आचार्य, दो विषयों में एमए, वेद विषय में पीएचडी की शिक्षा पूरी की। उन्होंने ज्योतिषाचार्य, आयुर्वेद चिकित्सा और संस्कृत विषयों में भी निपुणता हांसिल की। कट्टर सनातनधर्मी होने के बावजूद उन्होंने आर्य समाज के धर्मग्रंथों का भी गहन अध्ययन किया। उनके ऊपर आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती की शिक्षाओं का गहरा असर पड़ा। वह सनातन धर्म के साथ-साथ आर्य समाज धर्म में भी पारंगत हो गए। सन् 2021 में 73 वर्ष के हो गए स्वामी शांतनु जी महाराज ओड़िसा के बलांगीर जिले के लोईसिंग्हा नगर में वहां के एक बड़े किसान गणेश्वर दास के यहां जन्में थे। परिवार में साधु-संतों, आध्यात्मिक शख्सियतों का आना-जाना था। जिनकी सेवा करते-करते शांतनु जी के मन में उनके जैसा ही बनने की ही प्रबल इच्छा जागृत हो गई।
शांतनु जी महाराज का कहना है कि सत्संग बिना विवेक ना होए, रामकृपा बिनु सुलभ ना सोए, सतसुद रही सत्संगति पाई,पारस परम कुधातू सुहाई। वह कहते हैं कि संत संगति किं न करोती पुशाम यानि जीवन में परिवर्तन के लिए सत्संगत आवश्यक है जो प्रभु कृपा से ही मिलती है। वर्ष-2002 से स्वामी शांतनु जी महाराज देवबंद में सिद्धकुटी पर आश्रम बनाकर निरंतर अध्यात्म की साधना में लीन हैं। वह आसपास के क्षेत्रों और गांवों में लोगों के यहां यज्ञ कराते हैं। सनातन धर्म की शिक्षाओं के साथ-साथ हवन और यज्ञ करने पर भी बल देते हैं। स्वामी शांतनु जी महाराज योग कलाओं में निपुण होने के साथ-साथ आर्य समाज और सनातन धर्म के लिए सेतु का भी काम करते हैं। आर्य समाज में निष्णात होने के कारण बहुत से सनातनधर्मी उनसे चिढ़ते हैं और खार भी खाते हैं। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसे अनेक ग्रामीण जो दूध ना देने वाली गायों को कसाइयों के हाथों कटने के लिए बेच देते थे, उन्हें स्वामी शांतनु जी के आश्रम में सौंप गए। स्वामी जी के आश्रम में अनेक दूध देने वाली गाएं भी हैं।जिनके दूध की आय से वह गऊओं के पालन में अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं।
जिस कुटी में स्वामी जी का प्रवास है, वह पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत अनुकूल है। विद्वतजनों, साधु-संतों का स्वामी जी की कुटिया पर आने, रहने का अनवरत क्रम बना रहता हैं। स्वामी शांतनु जी महाराज प्रत्येक शनिवार को मौन व्रत धारण करते हैं। उनके जीवन की एक अहम बात यह भी है कि घर छोड़ने और संन्यासी बनने के करीब 50 साल बाद उनके माता-पिता का उनसे देवबंद में इसी कुटिया पर उनका मिलन हुआ। अपने माता-पिता के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अब कभी-कभार शांतनु जी महाराज उड़ीसा अपने माता-पिता के पास चले जाते हैं। स्वामी शांतनु जी महाराज को भौतिक सुखों को त्यागने, घर-गृहस्ती ना बसाने और परिवार का त्याग करने का कोई भी मलाल नहीं है। वह यहां आश्रम में नीचे जमीन पर ही सोते हैं। गऊ माताओं को स्वयं अपने हाथों चारा-पानी करते हैं। आसपास के परोपकारी, दानी किसान स्वामी जी को गऊ माताओं के लिए एवं उनके यहां आने-जाने वाले साधु संतों के लिए और खुद स्वामी जी के लिए दयालुता के साथ अन्न और धन का दान करते हैं।