दुनिया के सामने अच्छा बनने की कोशिश है या तालिबान सच में बदल गया है, इसका जवाब तो भविष्य ही बताएगा, मगर मौजूदा वक्त में तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं की जबरन शादी पर रोक लगा दी है। अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज तालिबान ने शुक्रवार को कहा कि उसने महिलाओं की जबरन शादी पर प्रतिबंध लगा दिया है। तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंजादा ने इस फैसले की घोषणा की। अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद अगस्त में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से देश में अंतरराष्ट्रीय मदद बहाल नहीं हुई है और अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है। देश में गरीबी बढ़ती जा रही है।
तालिबान द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है, ‘दोनों (महिला और पुरुष) बराबर होने चाहिए। कोई भी महिलाओं को जबरदस्ती या दबाव से शादी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।’ तालिबान ने यह कदम संभवत: इसलिए उठाया है क्योंकि विकसित राष्ट्रों से मान्यता हासिल करने और सहायता बहाल करने के लिए इन मानदंडों को पूरा किया जाना जरूरी है। गरीब, रूढ़िवादी देश में जबरन विवाह बहुत प्रचलित है क्योंकि आंतरिक रूप से विस्थापित लोग कम उम्र की अपनी बेटियों की शादी पैसे लेकर कर देते हैं। इस धन का उपयोग कर्ज चुकाने और परिवारों के भरण पोषण के लिए किया जाता है।
आदेश में शादी के लिए न्यूनतम उम्र का उल्लेख नहीं किया गया है, हालांकि पहले यह 16 साल निर्धारित थी। अफ़गानिस्तान में दशकों से महिलाओं को संपत्ति की तरह माना जाता रहा है। हत्या के बदले या विवादों अथवा कबायली झगड़ों को समाप्त करने के लिए भी बेटियों की शादी करा दी जाती है। तालिबान ने कहा है कि वह इस प्रथा के खिलाफ है। तालिबान ने यह भी कहा कि एक विधवा को अब अपने पति की मृत्यु के 17 सप्ताह बाद पुनर्विवाह करने की अनुमति होगी। तालिबान नेतृत्व का कहना है कि उसने अफगान अदालतों को महिलाओं विशेष रूप से विधवाओं के साथ उचित व्यवहार करने का आदेश दिया है। तालिबान का यह भी कहना है कि उसने अपने मंत्रियों से महिलाओं के अधिकारों के बारे में पूरी आबादी में जागरूकता फैलाने को कहा है। देश में अब भी सात से 12वीं कक्षा की हजारों लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं है और तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अधिकतर महिलाओं के काम पर लौटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।