कांग्रेस (Congress) पर परिवारवाद का आरोप लगानेवाली बीजेपी (BJP) भी अछूती नहीं है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 25 से अधिक मंत्रियों, विधायकों और सांसदों के रिश्तेदारों को टिकट देकर बीजेपी ने संकेत दिया है कि फार्मूला आगे भी अपनाया जा सकता है. नतीजों के बाद पता चलेगा कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के रिश्तेदारों का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि बीजेपी ने ‘गुजरात मॉडल’ की तर्ज पर कर्नाटक में भी पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे लेकिन भरपाई रिश्तेदारों को टिकट देकर की.
फैसला बीजेपी की परिवारवाद पर राजनीतिक लाइन से विपरीत रहा. कर्नाटक में पार्टी ने 25 से ज्यादा मंत्रियों, विधायकों और सांसदों के करीबी रिश्तेदारों को टिकट देकर दक्षिण का एकमात्र किला बचाने की चाल चली है. हालांकि, टिकट वितरण के बाद बीजेपी में मची भगदड़ ने आलाकमान को भी चिंता में डाल दिया. डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी ने आखिरकार मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के जीतने में सक्षम करीबी रिश्तेदारों को टिकट दिया.
परिवारवाद की विरोधी बीजेपी क्यों है मजबूर?
सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या सात महीने बाद मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी दिग्गज नेता बेटे, बेटियों या करीबी रिश्तेदारों को टिकट दिलवा पाएंगे? बीजेपी के दिग्गज नेताओं का परिवार राजनीतिक लाइन बड़ी करने में लगा है. राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पिछले चुनाव में बेटे आकाश विजयवर्गीय को राजनीतिक विरासत सौंप चुके हैं. पार्टी ने पिता और पुत्र में से किसी एक को टिकट देने की शर्त रखी थी.
क्या नेताओं के परिजनों को मिलेगा टिकट?
पिता ने बेटे को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया. आकाश विजयवर्गीय बड़े मार्जिन से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे. अब 2023 के चुनाव मैदान में उतरने का कयास लगाया जा रहा है. सबसे पहला नाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय चौहान का आता है. कार्तिकेय पिता के विधानसभा क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन का नाम भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना है.
पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव का नाम पिछले लोकसभा चुनाव में उछला था. सागर सीट के दावेदार का नाम पार्टी ने परिवारवाद का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था. फिलहाल इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पिता की सीट गढ़ाकोटा से अभिषेक भार्गव की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही है. गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, राजस्व मंत्री कमल पटेल के बेटे सुदीप पटेल, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के बेटे अक्षय भंसाली, पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन, पूर्व मंत्री जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया, परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बेटे आकाश सिंह राजपूत और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के बेटे तुमुल झा भी विधानसभा टिकट के दावेदार माने जा रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि मध्य प्रदेश में भी मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ जनता नाराज है. जनता की नाराजगी को देखते हुए बीजेपी की मजबूरी है ‘गुजरात मॉडल’ की तर्ज पर आंतरिक सर्वे को बुनियाद बनाकर विधायकों का टिकट काट दे. लेकिन पार्टी को चिंता भी है कि कद्दावर मंत्री या विधायक का टिकट काटने से स्थानीय स्तर पर भीतरघात हो सकता है. यही वजह है कि अब चर्चा चल रही है कि बड़े नेता का टिकट काटकर बीजेपी करीबी रिश्तेदार को चुनाव लड़वाए.
इसे अब कर्नाटक फार्मूला कहा जा रहा है. मध्य प्रदेश में एक दर्जन से अधिक नेता पुत्र, पुत्री या करीबी रिश्तेदार टिकट की लाइन में हैं. परिवारवाद की विरोधी बीजेपी विपक्षी पार्टियों पर चुनाव में आक्रमक हो जाती है, लेकिन हकीकत है कि बीजेपी के नेता भी पुत्र, पुत्री या करीबी रिश्तेदारों को टिकट दिलाने में कामयाब हो जाते हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 48 और कांग्रेस ने 23 सीटों पर नेताओं के भाई-भतीजों और बेटे-बहू को टिकट दिया था.
34 टिकट बेटे-बेटियों और 14 परिवार के किसी अन्य सदस्य को मिला. मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा 26 टिकट, मध्य भारत में 17, बुंदेलखंड में 9, विंध्य में 8, ग्वालियर-चंबल में 6 और महाकौशल में 5 टिकट नेताओं के परिजनों को दिए थे. बीजेपी ने मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा तो कांग्रेस ने मध्य भारत और मालवा-निमाड़ में सबसे ज्यादा नेताओं के परिजनों को टिकट बांटे थे.