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जानिए नरक चौदस के दिन शरीर पर क्यों लगाया जाता है उबटन और तेल !

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi) का त्योहार होता है. इसे नरक चौदस और छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराया था. इसीलिए इस दिन को नरक चौदस (Narak Chaudas) के नाम से जाना जाता है.

इस बार रूप चतुर्दशी 3 नवंबर को बुधवार के दिन होगी. इस दिन सुबह के समय शरीर पर उबटन लगाने और तेल मालिश करने का विशेष महत्व है. इसके बाद शाम को यमदीप जलाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से सौंदर्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है. यहां जानिए कैसे शुरू हुआ शरीर पर उबटन और तेल मालिश का चलन.

ये है पौराणिक कथा

द्वापरयुग में नरकासुर नामक राक्षस ने चारों ओर हाहाकार मचा रखा था. उसने इस दौरान 16100 रानियों को बंधक बना लिया था और ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करता था. उसके घोर आतंक से मुक्ति पाने के लिए सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. चूंकि नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण उसका वध करने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गए. इसके बाद उसका वध किया और 16100 स्त्रियों को वहां से मुक्त कराया. मुक्त होने के बाद वे सभी महिलाएं श्रीकृष्ण से हाथ जोड़कर कहने लगीं कि अब समाज में उन्हें कोई स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए प्रभु अब आप ही बताएं कि हम कहां जाएं. उनकी बात सुनकर श्रीकृष्ण भगवान ने उन 16100 रानियों से विवाह करके उनका उद्धार किया. इसके बाद इन सभी स्त्रियों को कृष्ण की पटरानियों के तौर पर जाना जाने लगा.

चौदस तिथि के दिन नरकासुर की मृत्यु के बाद सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस दिन को एक पर्व के रूप में मनाया. इसके बाद से इस दिन को नरक चौदस और नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा. नरक नरकासुर की कैद में रहकर उन सभी स्त्रियों का रूप खो चुका था, ऐसे में उन स्त्रियों ने उबटन लगाकर और तेल मालिश करके अपने शरीर को स्वच्छ किया और 16 श्रंगार किया था. इस उबटन से उनका रूप निखर आया था. तब से रूप चतुर्दशी के दिन सरसों के तेल की मालिश और उबटन लगाने का चलन शुरू हो गया. मूाना जाता है कि जो महिलाएं इस दिन उबटन लगाती हैं और तेल से शरीर की मसाज करती हैं, उन्हें श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मणी से आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है.