बिहार-झारखंड और यूपी समेत पूरे भारत में मनाए जाने वाले छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुए इस पर्व का आज दूसरा दिन है और दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. खरना के दिन और इसके प्रसाद का काफी महत्व है. इस दिन छठ व्रत करने वाले लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम को गुड़ से बनी खीर खाकर व्रत तोड़ती हैं. इसे ही खरना का प्रसाद कहा जाता है. खरना के प्रसाद के खाने के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.
छठ महापर्व का पहला दिन
इससे पहले नहाय-खाय के दिन व्रत करने वाले लोग स्नान के बाद ही प्रसाद के रूप में जो भी खाना होता है, खाते हैं. लहसुन-प्याज रहित खाना पकाया जाता है, जिसमें अरवा चावल, चने की दाल, लौकी की सब्जी, कद्दू की सब्जी शामिल होती है. इसे प्रसाद के तौर पर व्रत करने वाले लोग और उनके परिवार के लोग ग्रहण करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि खाना पकाने की जगह बेहद साफ सुथरी और पवित्र हो. इसके लिए मिट्टी के चूल्हे बनाए जाते हैं और उसी पर छठ महापर्व का पूरा प्रसाद बनाया जाता है.
छठ महापर्व का दूसरा दिन
आज यानी 09 नवंबर को छठ महापर्व का दूसरा दिन है. इसे खरना के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रत करने वाले लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस प्रसाद को छठ महापर्व का सबसे अहम प्रसाद माना जाता है.
छठ पूजा का तीसरा दिन और पकवान की तैयारी
छठ पूजा का तीसरा दिन बेहद खास होता है. इस दिन सुबह की शुरुआत लोग बाजार की तरफ रुख करते हैं और पूजा से जुड़े सामान खरीदकर लाते हैं, जिसमें फल और गन्ना शामिल होता है. इधर घरों में व्रत करने वाले लोग तरह-तरह के पकवान का प्रसाद तैयार करते हैं. इसमें ठेकुआ, खजूर, पु्आ आदी पकवान शामिल होता है. छठ महापर्व में ठेकुए को मुख्य प्रसाद माना जाता है.
दोपहर तक पकवान से लेकर बाजार तक सारी तैयारियां हो जाती हैं. इसके बाद परिवार के सभा सदस्यों के साथ छठ व्रत करने वाले लोग छठ घाट पर पहुंचते हैं और वहां छठी मइया की पूजा की जाती है. इस दौरान डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. उनकी अराधना की जाती है और सूर्य ढलते ही सभी लोग वापस घरों को लौट जाते हैं. इसके बाद घर पर ही पूजा होती है और इस दौरान छठ के पारंपरिक लोक गीत गाए जाते हैं. इस पूजा को कोसी भरना कहते हैं.
छठ महापर्व का चौथा और अंतिम दिन
छठ महापर्व के चौथे और अंतिम दिन सुबह में व्रत करने वाले लोगों के परिवार में कोई एक या कुछ लोग घाट पर गन्ना लेकर पहुंचते हैं और कोसी भरते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान 5, 7 या 11 गन्ने को एक में बांधकर तैयार किया जाता है और उसके नीचले हिस्से को फैलाकर उसके अंदर टोकरी में दिए जलाए जाते हैं. इसे ही कोसी भरना कहा जाता है. इसके बाद व्रत करने वाले लोग जिसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल होते हैं, वो घाट पर पहुंचते हैं और सूर्य के उगने तक पानी में उतरकर उनकी अराधना और पूजा करते हैं. इसके बाद सूर्य के उगते ही उन्हें अर्घ्य देकर लोग अपना व्रत खोलते हैं. इस दौरान घाट पर ही लोगों को प्रसाद का वितरण किया जाता है. इसी के साथ छठ महापर्व का समापन हो जाता है.