देवभूमि उत्तराखंड की प्राकृतिक और मनोहारी नजारों के बीच स्थित पवित्र धामों की महिमा अपरंपार है। इन सबके बीच यहां की सांस्कृतिक और पौराणिक विरासत भी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
पवित्र धाम बदरीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित देश का आखिरी गांव माणा भी देश-विदेश के सैलानियों के दीदार का केंद्र बना रहता है। सरस्वती नदी के तट पर बसा माणा गांव छह माह बर्फ से ढका रहता है और यहां रहने वाले बाशिंदे निचले इलाकों में चले आते हैं।
चमोली जिले में स्थित भारत का आखिरी गांव माणा समुद्र तल से 3118 मीटर (10227 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इस गांव का नाम मणिभद्र देव के नाम पर ‘माणा’ पड़ा था। इस गांव के आगे केवल भारतीय सेना की पोस्ट है। माणा का संबंध महाभारत काल से भी माना जाता है और भगवान गणेश से भी यहां की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि माणा गांव से होकर ही पांडव स्वर्ग गए थे।
भारत के आखिरी गांव में आखिरी दुकान भी है। जहां फोटो क्लिक करवाने के लिए पर्यटक दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। यहां स्थित हिंदुस्तान की आखिरी दुकान चाय की दुकान है। जहां लोग चाय की चुस्की लेते हैं। गांव माणा में आज भी सरस्वती की पूजा की जाती है। माणा से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर तिब्बत सीमा की तरफ (माणा पास) से आने वाली नदी को सरस्वती माना जाता है। वहां सरस्वती कुंड से इस नदी का उद्गम माना जाता है। माणा गांव के आकर्षक स्थलों में नीलकंठ चोटी, ताप्त कुंड, भीम पुल, माता-मूर्ति मंदिर, वसुंधरा, व्यास गुफा शामिल है।
कभी हुआ करता था तिब्बत से व्यापार का प्रमुख केंद्र
साल 1962 के भारत-चीन युद्ध से पूर्व माणा तिब्बत से व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। लेकिन युद्ध के बाद यहां से तिब्बत की आवाजाही पर रोक लगा दी गई। आज भी हर साल हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं। वहीं हजारों श्रद्धालु माणा की ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व पौराणिक विरासत को देखने के लिए माणा गांव का रुख करते हैं। इस गांव का संबंध बदरीनाथ धाम से भी जुड़ा हुआ है। बदरीनाथ धाम मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बदरीश को पहनाया जाने वाला घृत कंबल भी माणा गांव की महिलाएं ही तैयार करती हैं।
माणा के ऊनी वस्त्र खरीदना नहीं भूलते सैलानी
माणा में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। यहां के लोग तीर्थाटन-पर्यटन से जीविका चलाते हैं। माणा आने वाले पर्यटक व श्रद्धालुओं द्वारा यहां के निवासियों द्वारा बनाए गए ऊनी वस्त्र, गलीचे, कालीन, दन, शाल, पंखी सहित अन्य पारंपरिक वस्तुएं खरीदे जाते हैं। जिससे इन्हें आय होती है। इस गांव से जुड़ी एक और मान्यता यह भी है कि माणा आने वाले हर व्यक्ति की गरीबी दूर हो जाती है। इस गांव को भगवान शिव का आशीर्वाद है कि जो भी यहां आएगा, उसकी गरीबी दूर हो जाएगी। माणा में सरस्वती, वेदव्यास और गणेश मंदिर भी हैं।
माणा में भीम पुल के पास सरस्वती की पूजा की जाती है। इसके लिए देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। वेद पुराणों में जिक्र है कि सरस्वती माणा के पास अलकनंदा नदी में मिलकर विलुप्त हो जाती है। किवदंतियों के अनुसार वेदव्यास ने सरस्वती नदी के किनारे ज्ञान प्राप्त किया था। वेदव्यास जब गणेश जी को महाभारत लिखवा रहे थे तो सरस्वती नदी की आवाज से व्यवधान पहुंच रहा था। जब वेदव्यास के अनुरोध के बाद भी सरस्वती नहीं हुई तो उसे श्राप दे दिया था वेदव्यास ने कहा कि उसका नाम यहीं तक रहेगा। तभी से सरस्वती को विलुप्त माना जाता है। अलकनंदा में मिलने के बाद सरस्वती के जल का रंग नहीं दिखता। सरस्वती नदी प्रयागराज इलाहाबाद में जाकर प्रकट होती है।
कब आएं माणा गांव
बरसात के अलावा बाकी सभी मौसम में माणा गांव घूमने के लिए बेहतर है। यहां मई से लेकर अक्टूबर तक पर्यटक पहुंचते हैं। यहां गर्मियों में मौसम सुहावना होता है। बदरीनाथ आने वाले श्रद्धालु माणा गांव के दीदार के लिए जरुर पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचें देश के आखिरी गांव माणा
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रेलवे स्टेशन पहुंचकर आपको यहां से चमोली के लिए टैक्सी या बस आसानी से मिल जाएगी। आप ऋषिकेश और हरिद्वार से भी बदरीनाथ के लिए सीधे बस या टैक्सी भी ले सकते हैं। यहां से माणा गांव महज तीन किलोमीटर की दूरी पर है।