सरकारी दस्तावेजों के अनुसार लखनऊ जिले के मोहनलालगंज तहसील के गुलालखेड़ा के राजे वर्ष 2013 की मृत्यु हो चुकी है। जिसके बाद उनकी एक बीघा जमीन किसी और के नाम कर दी गई है। अब राजेश तहसील के चक्कर लगा रहे हैं केवल यह बताने के लिए कि वह जिंदा हैं। केवल लखनऊ के राजेश ही ऐसे व्यक्ति नहीं है जिनके साथ ऐसा हुआ है। हाथरस हो या मऊ, गोरखपुर हो या कौशाम्बी सूबे में ऐसे कई जिंदा ‘भूत’ तहसील के चक्कर लगा रहे हैं जो अपने हक की मांग कर रहे हैं। यहां हम उन्हें भूत इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कागजों में उनको मृत दिखा दिया गया है।
बता दें राजेश अपनी बहन के साथ बचपन में कानपुर शिफ्ट हो गए थे। लम्बे वक्त तक वहां गुमटी नम्बर पांच में दुकान लगाकर अपना गुजारा कर रहे थे जिसके बाद फिर वो गांव वापस लौटे तो मालूम हुआ कि उनकी जमीन किसी दूसरे के नाम वरासत हो गई है। उनका किसी ने जाली मृत्यु प्रमाणपत्र बनाकर तहसील में जमा कर दिया है। उन्होंने इस बाबत लेखपाल से लेकर एसडीएम तक गुहार लगाई है साथ ही तहसील दिवस पर फरियाद भी की है। हर बार अधिकारी दिलासा देते हैं मगर फिर जांच बैठती है जोकि ठंडे बस्ते में चली जाती है।
तीन लोगों को दिखाया मृत, जांच में हुआ खुलासा
पिछले वर्ष कानपुर के घाटमपुर में वारिस को मृत घोषित कर जमीन पर कब्जे का मामला उजागर हुआ था। इस बात का खुलासा बार एसोसिएशन की चिट्ठी पर हुई जांच में हुआ। नौरंगा सर्किल के कैथा गांव निवासी अमरनाथ सचान, सियादेवी और राजदेवी को राजस्व अभिलेखों में मृत दर्शाया गया था। इनकी भूमि महेंद्र पुत्र अंगू के नाम वरासत के आधार पर दाखिल खारिज कर दी गई। जिसने ये फर्जीवाड़ा किया था उसने बचने के लिए तीनों वरासत में महेंद्र का पता अलग-अलग दिया था। महेंद्र को अमरनाथ की जमीन के लिए गूजा गांव का निवासी दर्शाया गया। जबकि राजदेवी की जमीन के लिए सीहपुर गांव और सियादेवी की भूमि के लिए महेंद्र का नाम खतौनी में दर्ज करते वक्त पता नहीं लिखा गया। जब इसकी जांच तहसीलदार ने कराई तो अभिलेखों में राजस्व निरीक्षक के हस्ताक्षर भी मिले। जिसके बाद तहसीलदार विजय यादव ने सभी वरासत को रद कर दिया।
23 वर्षों से ‘मैं जिंदा हूं’ की तख्ती लिए घूम रहे
वारणसी में पिछले 23 वर्षों से राजस्व अभिलेखों में खुद को जीवित साबित करने के लिए चौबेपुर के छितौनी गांव के संतोष सिंह की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। उन्होंने 29 दिसंबर 2020 को राष्ट्रपति को भी एक पत्र भेजा है। संतोष ने बताया सन-1995 में वह 18 साल के थे। उसी साल उनके गांव में नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म ‘आंच’ की शूटिंग चल रही थी। शूटिंग के बाद वह उस टीम के साथ मुंबई आ गये। तीन साल बाद वह गांव लौटे तो मालूम चला कि गांव के कुछ लोगों ने राजस्व में उन्हें मृत घोषित कराकर उनकी 12 एकड़ जमीन पर कब्ज़ा कर लिया। तब से संतोष खुद को जिन्दा साबित कराने के लिए जिले के प्रशासनिक-पुलिस अधिकारियों से लेकर दिल्ली तक अपनी गुहार लगा चुके हैं। संतोष को ‘मैं जिंदा हूं’ की तख्ती लिए तहसील, कभी मुख्यालय तो कभी लखनऊ-दिल्ली में देखा जा सकता है।
कागजों में मृत दिखाकर हड़प ली जमीन
बांसगांव गोरखपुर के निवासी अनिरुद्ध कुमार जीवित हैं मगर पट्टीदारों ने फर्जी वसीयत बनाकर जमीन हड़प ली। जिसके बाद अनिरुद्ध खुद को जिंदा साबित करने के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं। आपको बता दें कि तहसील में इस प्रकार के चार केस पहले से ही चल रहे हैं।
50 ऐसी महिलाएं पति कागजों में हैं मुर्दा, असल में हैं जीवित
कौशाम्बी जिले में 50 से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं, जिनके पति को कागजों में मृत साबित हो चुके हैं लेकिन वो जीवित हैं। मात्र 30 हजार रुपये के लिए धोखेबाजों ने इनके पतियों के जीवित होने के प्रमाण पत्र के साथ खेल कर दिया। जिसके बाद अब इनको रुपया भी नहीं मिला और अब वह खुद को जीवित साबित करने के लिए परेशान हैं। उसके बाद कार्रवाई अलग से चल रही है। एक खुलासा और हुआ कि एक वृद्धा को जिंदा ही मृत घोषित कर दिया गया था। वृद्धा की खबर जब अख़बारों में छपी तो अधिकारी हरकत में आए और उसकी दोबारा वृद्धा पेंशन चालू करवा दी। प्रयागराज मेजा तहसील के सिरसा नगर पंचायत के कटरा हीराराम मोहल्ला निवासी सानिया पुत्री नवाब अली जीवित हैं लेकिन इनके परिवार के लोगों ने इन्हें मृत घोषित करके इनकी जमीन पर अपना कब्जा कर लिया। अब वो न्याय पाने के लिए दर-दर भटक रही हैं। जब वो पांच जनवरी को संपूर्ण समाधान दिवस में पहुंचीं तब पूरा वाकया एसडीएम रेनू सिंह को बताया। लेकिन अभी तक उन्हें केवल आश्वासन ही मिला है।
तुम मर चुके हो राशन कार्ड नहीं बनेगा
लखीमपुर में एक व्यक्ति को कागजों में मृत होने का तब मालूम चला जब उसने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया। ईसानगर ब्लॉक के मटेरिया गांव में नन्दराम नाम का किसान जब राशन कार्ड बनवाने पहुंचा तो उसे मालूम चला कि वह मर चुका है। जिसके कारण उसका कार्ड नहीं बन सकता। जिसके बाद अब नन्दराम ब्लॉक और तहसील के चक्कर लगा रहा है।
मृतक को दिखाया जिंदा
मलिहाबाद के रानीखेड़ा जिंदौर निवासी संत लाल की जमीन हड़पने के लिए एक मृतक की गवाही करा दी गई। तीन साल पहले उन पिता की मौत हो गई थी लेकिन दस्तावेजों में उनके हस्ताक्षर और अंगूठे का निशान लगाया गया। जब कोर्ट ने मुकदमा दर्ज कराने को कहा तब इस बात का खुलासा हुआ।
उत्तर प्रदेश में अब भी हैं 50 हजार से ज्यादा जिंदा भूत
मुबारकपुर आजमगढ़ की भगवानी देवी ने आरोप लगाया है कि रिश्तेदारों ने उनको मृत बताकर उनकी जमीन पर कब्ज़ा कर लिया। मृतक संघ के अध्यक्ष लाल बिहारी उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों की संख्या 50 हजार से ज्यादा है। जब इस बात का सर्वे कराया जायेगा तो देशभर में लाखों केस ऐसे ही मिलेंगे। उन्होंने कहा कि थाना सादाबाद हाथरस निवासी विमान कांत निर्मोही केन्द्रीय रिजर्व पुलिस में तैनात थे। उड़ीसा में तैनाती के दौरान उनको पांच मई 2010 को भुवनेश्वर में रिपोर्ट करने गए इस बीच नक्सलियों ने उनका अपहरण कर लिया। जब उनको आठ साल बाद छोड़ा गया तब वो वापस आये तो दस्तावेजों में मृत घोषित हो चुके थे। वो भी अब अपने जिन्दा होने की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं।