आप कभी किसी उबलते और दहाड़ते हुए ज्वालामुखी के पास जाने की कोशिश नहीं कर सकते क्योंकि वो बहुत खतरनाक होते हैं. ज्वालामुखी से निकलने वाले अंगारे काफी विनाशकारी होते हैं. जब भी कोई ज्वालामुखी (Volcano) फटता है तो उसके आसपास के क्षेत्रों में एक तरह का महाविनाश आ जाता है. लेकिन कई ज्वालामुखी इससे भी कहीं ज्यादा विनाशाकारी होते हैं. इस तरह के ज्वालामुखियों को महा ज्वालामुखी (Super Volcano) कहा जाता है. ये फटने
के बाद हजारों सालों तक सक्रिय और घातक बने रहते हैं. यही वजह है कि इंडोनेशिया (Indonesia) के एक पुरातन महा ज्वालामुखी के अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने इस जरूरत पर बल दिया है कि इन प्रलयकारी घटनों का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित करने पर इंसानों को गंभीरता से सोचना होगा.
अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम में कर्टिन यूनिवर्सिट वैज्ञानिक भी शामिल थे जहां के जॉन डी लैटर सेंटर की एसोसिएट प्रफोसर मार्टिन डैनिसिक इस अध्ययन के प्रमुख लेखक हैं. मार्टिन ने बताया कि महा ज्वालामुखी प्रायः विशाल प्रस्फुटनों
के बीच हजारों सालों के अंतराल में कई बार प्रस्फुटित होते रहते हैं. लेकिन यह स्पष्ट नहीं हैं कि बीच की सुसुप्त अवस्था में उनमे क्या होता है.
डैनिसिक ने बताया कि इस लंबे सुसुप्त अंतराल को समझने से यह तय होगा कि हमें युवा सक्रिय महा ज्वालामुखियों में क्या देखना चाहिए जिससे हमें भविष्य के प्रस्फुटनों का पूर्वानुमान लगा सकें. महा प्रस्फोट पृथ्वी के इतिहास में सबसे
विनाशाकारी घटनाएं में से एक होती हैं जिसमें से, लगभग तुरंत ही, विशाल मात्रा में मैग्मा बाहर आ जाता है.
इससे पृथ्वी की पूरी जलवायु तक प्रभावित हो जाती है जिससे हमारा ग्रह ज्वालामुखी शीतकाल में जा सकता है. यह असामान्य रूप से बहुत ठंडा समय होता है जिससे व्यापक तौर पर अकाल और जनसंख्या विखंडन जैसे नतीजे देखने को मिल सकते हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि महा ज्वालामुखी के काम करने के तरीको को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे भविष्य में होने वाले इन अटल प्रस्फोटों की जानकारी मिल सकती है जो हर 17 हजार साल में एक बार होते हैं.
महा ज्वालामुखी (Super Volcano) का दुष्प्रभाव आम ज्वालामुखियों की तरह केवल प्रस्फोट और उसके कुछ समय के बाद तक सीमित नहीं रहता.
इस टीम ने इंडोनेशिया में 75 हजार साल पहले हुए टोबा महा प्रस्फोट के बाद छूटे मैग्मा का अध्ययन किया. उन्होंने फेल्डस्पार और जिरकॉन जैसे खनिजों पर खास ध्यान दिया जिनमें आग्नेय चट्टानों में हीलियम और ऑरगोन गैसों केरिकॉर्ड टाइम कैप्सूल की तरह जमा हो गए थे. डैनिसिक ने बताया कि शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए भूकालानुक्रमिक आंकड़ों, सांख्यकीय निष्कर्षों और थर्मल मॉडिलिंग का उपयोग किया.
अध्ययन में दर्शाया गया कि महा प्रस्फोट के बाद, प्रस्फुटन से बने गहरे गड्ढे से मैग्मा 5 से 13 हजार सालों तक लगातार निकलता रहा. इसके बाद उसके ऊपर कछुए की खोल की तरह एक ठोस परत जम गई. यह अध्ययन प्रस्फोटों की वर्तमान ज्ञान को चुनौती देता है, जिसमें ज्वालामुखी के अंदर के तरल मैग्मा का अध्ययन कर भविष्य के नुकसानों का आकंलन किया जाता है.