यौन उत्पीड़न को लेकर हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अजीबोगरीब फैसला सुनाया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी है. देश के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने मामले के आरोपी को नोटिस जारी किया है और दो सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है.
बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके स्तन को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता. बंबई हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि इस तरह का कृत्य पोक्सो अधिनियम के तहत यौन हमले के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता.
बंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की जज पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए ”यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना” जरूरी है. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है. जज गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया जिसने 12 साल की लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 साल के व्यक्ति को तीन साल कारावास की सजा सुनाई थी.
बिना कपड़े उतारे सीने को छूना यौन हमला नहीं-
हाई कोर्ट अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की. हाई कोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह भादंसं की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है. धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है.
सत्र अदालत ने पोक्सो कानून और भादंसं की धारा 354 के तहत उसे तीन साल कैद की सजा सुनाई थी. दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं. बहरहाल, हाई कोर्ट ने उसे पॉक्सो कानून के तहत अपराध से बरी कर दिया और भादंसं की धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी. हाई कोर्ट ने कहा, ”अपराध के लिए (पोक्सो कानून के तहत) सजा की कठोर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अदालत का मानना है कि मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना जरूरी हैं.”
हाई कोर्ट ने बताई यौन हमले की परिभाषा
इसने कहा, ”किसी विशिष्ट ब्यौरे के अभाव में 12 साल की बच्ची के वक्ष को छूना और क्या उसका टॉप हटाया गया या आरोपी ने हाथ टॉप के अंदर डाला और उसके स्तन को छुआ गया, यह सब यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.” जज गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि”वक्ष छूने का कृत्य शील भंग करने की मंशा से किसी महिला/लड़की के प्रति आपराधिक बल प्रयोग है.” पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की परिभाषा है कि जब कोई ”यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छुआता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो, उसे यौन हमला कहा जाता है.” अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यौन हमले की परिभाषा में ”शारीरिक संपर्क” ”प्रत्यक्ष होना चाहिए” या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए. अदालत ने कहा, ”स्पष्ट रूप से अभियोजन की बात सही नहीं है कि आवेदक ने उसका टॉप हटाया और उसका वक्ष स्थल छुआ. इस प्रकार बिना संभोग के यौन मंशा से सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ.”