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फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में आजम खान, पत्नी तंजीम और बेटे अब्दुल्ला को मिली बड़ी राहत, हाईकोर्ट ने दी जमानत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा नेता आज़म खान, उनकी पत्नी डॉ. तंजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम को फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में जमानत दे दी है। कोर्ट ने आरोपों की प्रकृति और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों पर विचार करते हुए कहा कि आजम खान का मामला डॉ. तंजीन फातिमा और मोहम्मद अब्दुल्ला आजम के मामले से अलग है। अतः आजम खान की सजा का फैसला और आदेश उनके आपराधिक संशोधन के लंबित रहने के दौरान स्थगित रहेगा, जबकि उनकी पत्नी और बेटे की सजा के फैसले और आदेश पर रोक लगाने की प्रार्थना खारिज कर दी गई है।

इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि याचियों के खिलाफ गठित अपराध कोई जघन्य अपराध नहीं है। उन्होंने ट्रायल के दौरान मिली जमानत का दुरुपयोग नहीं किया है, साथ ही तीनों ने मिली सजा में से पहले ही एक से दो वर्ष तक की सजा काट ली है। इसके अलावा आजम खान और उनकी पत्नी वृद्धावस्था संबंधी कई बीमारियों से ग्रस्त भी हैं। उक्त पृष्ठभूमि पर न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकलपीठ ने आजम खान व उनके परिवार को संबंधित न्यायालय की संतुष्टि के लिए एक व्यक्तिगत बांड और समान राशि के दो विश्वसनीय जमानतदार प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

हालांकि आजम खान अभी जेल में ही रहेंगे, क्योंकि उन्हें एक अन्य मामले में भी सजा हुई है जबकि तंजीन फातिमा और अब्दुल्ला आजम जेल से बाहर आ जाएंगे। मालूम हो कि कोर्ट ने गत 14 मई को सुनवाई बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। बता दें कि आजम खान और उनके परिवार ने रामपुर एमपी/एमएलए कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी।

गौरतलब है कि वर्ष 2019 में रामपुर से भाजपा विधायक आकाश सक्सेना ने रामपुर के गंज थाने में सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान और उनके परिवार के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दो जन्म प्रमाण पत्र होने का मामला दर्ज कराया था, जिस पर संज्ञान लेते हुए एमपी/एमएलए कोर्ट ने तीनों को 18 अक्टूबर 2023 को 7-7 साल की सजा सुनाई थी। इसी तरह अब्दुल्ला आजम के जन्म प्रमाण पत्र को लेकर वर्ष 2017 में रामपुर की स्वार सीट से बसपा प्रत्याशी नवाब काजिम अली खान ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी और हाई कोर्ट में दो अलग-अलग जन्म तिथियों का हवाला देते हुए अब्दुल्ला आजम की सदस्यता रद्द करने की मांग लेकर याचिका दाखिल की थी।