सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए भारत (India) ने 1960 की इस संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान (Pakistan) को नोटिस (notice) जारी किया है। नोटिस के तहत अगले 90 दिनों के भीतर पाकिस्तान सरकार को उल्लंघन सुधारने के लिए भारत सरकार सरकार से इस मुद्दे पर बातचीत करनी होगी। सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों और इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला और भारत को इसमें संशोधन के लिए नोटिस जारी करने पर मजबूर किया।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि यह नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रूख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है। यह नोटिस सिंधु जल संबंधी आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को भेजा गया। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि और उसकी भावना को अक्षरश: लागू करने का भारत दृढ़ समर्थक और जिम्मेदार साझेदार रहा है। वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था। इसके बाद वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा तरीके से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव दिया।
पाक ने संधि का उल्लंघन किया
सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए तंत्र का उल्लंघन है। इसी के अनुरूप, भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया। सूत्र ने बताया कि एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने 2016 में इसे माना था और दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करने को रोकने का निर्णय किया था, साथ ही भारत और पाकिस्तान से परस्पर सुसंगत रास्ता तलाशने का आग्रह किया था।
सूत्रों ने कहा कि भारत द्वारा लगातार परस्पर सहमति से स्वीकार्य रास्ता तलाशने के प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष 2017 से 2022 के दौरान स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लगातार जोर देने पर विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत की प्रक्रियाएं शुरू कीं। उन्होंने कहा कि एक ही मुद्दे पर समानांतर विचार किया जाना सिंधु जल संधि के प्रावधानों के दायरे में नहीं आता है।
सूत्रों ने कहा कि इस तरह से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर भारत संशोधन का नोटिस देने के लिए बाध्य हो गया। संशोधन के लिए नोटिस का उद्देश्य पाकिस्तान को संधि के उल्लंघन को सुधारने के लिए 90 दिनों के भीतर अंतर-सरकारी वार्ता में शामिल होने का अवसर प्रदान करना है। यह प्रक्रिया पिछले 62 वर्षों में सीखे गए पाठों को शामिल करने के लिए संधि को भी अपडेट करेगी।
क्या है सिंधु जल संधि
भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद जल बंटवारे को लेकर 19 सितंबर 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किए थे। विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था। इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों के जल का भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। परिवहन, बिजली और कृषि के लिए सिंधु घाटी की छह नदियों में तीन पूर्वी नदियां रावी, सतलुज और ब्यास के जल का इस्तेमाल करने का अधिकार भारत को दिया गया। पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब के जल के इस्तेमाल पर पाकिस्तान का अधिकार है। समझौते के तहत दोनों देशों के जल आयुक्तों को साल में दो बार मुलाकात करनी होती है और परियोजना स्थलों पर तकनीकी दौरे का प्रबंध करना होता है।