पाकिस्तानी सेना के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने संघीय मंत्रिमंडल द्वारा प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को अपदस्थ करने की कथित ‘ विदेशी साजिश’ की जांच और अमेरिका से भेजे गए तथाकथित ‘धमकी भरे पत्र’ के तथ्यों को सामने लाने के लिए गठित आयोग का नेतृत्व करने से इंकार कर दिया है। मीडिया में प्रकाशित खबरों में यह जानकारी दी गई।
उल्लेखनीय है कि ‘पत्र’ और कथित साजिश के आधार पर नेशनल असेंबली के उपाध्यक्ष कासिम सूरी ने विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को तीन अप्रैल को खारिज कर दिया था। हालांकि, पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उनके निर्णय को रद्द कर दिया था। उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार शनिवार को प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर आगे की कार्यवाही के लिए संसद का अहम सत्र शुरू हुआ।
‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की खबर के मुताबिक, पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने शुक्रवार को बताया कि मंत्रिमंडल ने लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाश प्राप्त) तारिक खान के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया, जो यह पता लगाएगी कि सत्ता परिवर्तन की धमकी जिसका जिक्र पत्र में किया गया था, वह वास्तव में था या नहीं। इस पत्र का सबसे पहले खुलासा प्रधानमंत्री खान ने 27 मार्च को एक जनसभा में किया था। खान ने दावा किया था कि पत्र में अमेरिका से उनकी सरकार को लेकर धमकी है।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून और जियो न्यूज द्वारा शुक्रवार को प्रकाशित खबर के मुताबिक लेफ्टिनेंट जनरल (अवकाश प्राप्त) खान ने आयोग की अध्यक्षता करने से इंकार कर दिया है और अपने निर्णय से सरकार को भी अवगत करा दिया है। खबर के मुताबिक सैन्य अधिकारी ने अपने निर्णय के पीछे कोई वजह नहीं बताई है। आयोग को यह पता लगाना है कि कितने सांसदों से विदेशी ताकतों ने संपर्क किया और इस संबंध में 90 दिनों में उसे अपनी रिपोर्ट देनी है।
चौधरी ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा था, ‘‘हमारे पास सबूत हैं कि प्रांतीय विधानसभाओं के आठ असंतुष्ट सदस्यों से विदेशी हस्तियों ने संपर्क किया था। आयोग स्थानीय आकाओं और सत्ता परिवर्तन की चाह रखने वाले के बीच संबंध की जांच करेगा।’’
उन्होंने कहा कि सांसदों को शनिवार को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले धमकी भरे पत्र की विस्तृत जानकारी दी जाएगी। जियो न्यूज ने चौधरी के हवाले से कहा, ‘‘एक बार पत्र की चुनिंदा सामग्री सार्वजनिक किए जाने के बाद यह सांसदों पर होगा कि वे (अविश्वास प्रस्ताव पर)मतदान करते समय अपनी अंतर आत्मा की आवाज के आधार पर फैसला करें।’’