प्रचंड गर्मी के इस मौसम में देश को बिजली संकट (Power Crisis in India) का सामना कर रहा है. देश ने शुक्रवार को 207 गीगावाट की रिकार्ड ऊर्जा की मांग को पूरा भी किया. मगर फिर भी देश में कई जगहों पर लंबे पावर कट (power cut) का सामना करना पड़ा. कोयले की कमी के संकट (coal crisis) से निपटने के लिए रेलवे ने 42 ढुलाई ट्रेनें शुरू की हैं. आईए जानते हैं कि देश में ऊर्जा संकट किन कारणों से पैदा हुआ है.
देश में ऊर्जा की डिमांड रिकार्ड स्तर पर
ऊर्जा मंत्रालय ने 29 अप्रैल की रात में ट्वीट कर बताया कि देश में शुक्रवार दोपहर 2:50 मिनट पर 207 गीगावाट ऊर्जा की मांग को पूरा किया. भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति का ये अब तक का सबसे बड़ा रिकार्ड है.
कुछ ही दिन पहले ऊर्जा मंत्रालय ने ट्वीट कर ऊर्जा आपूर्ति का पिछले साल जुलाई 2021 का रिकार्ड तोड़ा था. वहीं मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि मई जून के महीनें में ऊर्जा की मांग 215-220 गीगा वाट तक पहुंच सकती है.
किसानों को नहीं मिल पा रही मिट्टी में नमी
देश में ऊर्जा की बढ़ती मांग को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत माना जाता है. लेकिन मौजूदा हालात में मामला सिर्फ उद्योगो की मांग का नहीं है. इस साल मार्च और अप्रैल दोनों महीनों ने गर्मी के कई दशकों के रिकार्ड तोडे हैं. ऐसे में आम उपभोक्ताओं की खपत में भी भारी इजाफा हुआ है. इसके अलावा किसानों को अगली फसल के अपने खेत तैयार करने है. गर्मी की मार की वजह से उन्हे फसल बोने के पर्याप्त नमी नहीं मिल पा रही है. ऐसे में उन्हे सिंचाई के लिए इस बार ज्यादा बिजली की जरुरत पड़ रही है.
देश में 10770 मेगावाट बिजली की कमी
मंत्रालय के वेबसाईट National power portal के अनुसार 28 अप्रैल को देश में 10770 मेगावाट की कमी थी. कई राज्यों में लंबे लंबे पावर कट देखे गए. मंत्रालय के डाटा के हवाले से 29 अप्रैल की पीक डिमांड 199,000 मेगावाट की थी, जिसमें से 188,222 मेगावाट की ही आपूर्ति हो पाई.
ऊर्जा की मांग (मेगावाट में)
पीक मांग 199000
पीक आपूर्ति 188222
कमी -10778
स्रोत- NPP, 28 अप्रैल, 2022
81 कोल प्लांट के पास 5 दिनों से कम का कोयला
कोयले की आपूर्ति को बेहतर करने के लिए रेलवे ने विशेष ट्रेनें इस काम में लगाई हैं. देश में कोयला आधारित बिजली प्लांट के लिए 26 दिनों के कोयले के स्टाक का मानक तय किया गया है. मगर देश के करीब 81 पावर प्लांट में 5 दिनों से कम का ही कोयला बचा हुआ है. वहीं 47 ऐसे संयत्र हैं, जिनमें 6-15 दिन का ही कोयला स्टॉक हैं. 16 दिन से 25 दिनों के कोयला स्टॉक वाले पॉवर प्लांट केवल 13 हैं.
इन राज्यो में कोयला स्टॉक मानक से भी कम
देश के कई राज्यों में कोयले का स्टॉक 10 प्रतिशत या उससे भी कम है. इन राज्यों में सबसे खतरनाक हालात पश्चिम बंगाल के हैं, जहां मानकों के मुकाबले महज 5 प्रतिशत स्टाक बचा हुआ है. इसके अलावा तमिलनाडु, झारखंड और आंध्र प्रदेश में कोयला स्टॉक क्रमश: 7%, 9% और 10% है. वहीं मध्यप्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब में तय मानक का 25 प्रतिशत कोयला भंडार ही मौजूद हैं.
देश बिजली बनाने के लिए करीब 1/3 कोयले का आयात करता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें बीते साल चार गुना तक बढ़ गई हैं. इससे बिजली कंपनियों पर दबाव बढ़ गया है. आयातित कोयले पर 17255 मेगावाट से ज्यादा की क्षमता के तापीय ऊर्जा संयत्र काम करते हैं. मौजूदा जानकारी तक इन संयत्रों में भी आयात का स्टॉक मानकों का महज 30 प्रतिशत ही है.
कोयले के बढ़ते दामों ने बढ़ाया संकट
न्यूकैस्ल कोल के वायदा बाजार के अनुसार इस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत 320 डॉलर प्रति टन के आस पास चल रही थी. बीते साल 2021 में इसी समय कोयले का भाव 90 डॉलर प्रतिटन से भी कम था. हालांकि कोयले की कीमत में पूरे साल बढोतरी होती रही. प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी से बिजली बनाने में कोयले की मांग पर असर देखा गया. दिसंबर 2021 में कोयले की कीमत 150 डॉलर प्रतिटन पर पहुंच गई. इसके बाद फिर से यूक्रेन और रूस के बीच तनाव के कारण इसमे तेजी देखी गई. युद्ध शुरु होने के बाद मार्च महीने के पहले हफ्ते में कोयला 400 डॉलर प्रति टन कीमत को पार कर गया था.