कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल-मई में पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर संक्रमण का शिकार होकर जान गंवाने वाले करीब 2000 सरकारी कर्मचारियों के परिवारों को उत्तर प्रदेश सरकार ने आर्थिक मदद भेजी है। सरकार ने इस हफ्ते मुआवजे के तौर पर 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि जारी की है। सरकारी आदेश में जान गंवाने वाले राज्य सरकार के सभी 2128 कर्मचारियों का नाम दर्ज है। इनमें से 2097 की मौत कोविड-19 और 31 की मौत अन्य कारणों से हुई थी। 26 अगस्त के आदेश में राज्य चुनाव आयोग को 606 करोड़ रुपये भेजने की बात कही गई है।
जिला मजिट्रेटो को जान गंवाने वाले 2000 से ज्यादा कर्मचारियों में प्रत्येक परिवार को 30 लाख रुपये भेजने के आदेश दिए गए हैं। यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा, जिला मजिस्ट्रेट मृतक कर्मचारियों के परिजनों के बैंक खातों में आरटीजीएस के जरिए एक हफ्ते के भीतर रुपये ट्रांसफर कर देंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरुआत में कहा था कि चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के चलते कुछ ही कर्मचारियों की मौत हुई है, इसके लिए सरकार ने चुनाव आयोग के मानदंडों का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि मौत की गिनती तभी की जाएगी जब यह ड्यूटी के दौरान घर से निकलने और वापसी के दौरान हो। 26 अगस्त के आदेश में कहा गया है कि सरकार ने 2128 कर्मचारियों की मौत पर विचार करने के लिए मुआवजे को लेकर मानदंडों में विस्तार किया है।
26 अगस्त के आदेश में बताया गया, कोविड-19 महामारी के चलते बने हालात के कारण मृतक कर्मचारियों के फायदे और अनुकंपा के आधार पर पंचायत चुनाव की ट्रेनिंग, मतदान या मतगणना प्रक्रिया के 30 दिनों के भीतर मौतों पर विचार करने के लिए मानदंड बदले गए हैं। यह तब हुआ जब एक बड़े शिक्षक संगठन ने अप्रैल और मई में 2000 से ज्यादा शिक्षकों और अलग-अलग सरकारी विभागों के उन कर्मचारियों की मौत का दावा किया, जो चुनाव ड्यूटी पर थे और कोविड के चलते कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई थी।
26 अगस्त के आदेश के अनुसार, राज्य चुनाव आयोग के लिए 606 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं। जबकि अन्य 27.75 करोड़ रुपयों की व्यवस्था सरकार कर रही है, क्योंकि 2128 मृतक कर्मचारियों के परिवारों में प्रत्येक को 30-30 लाख रुपये मुआवजा देने के लिए 633.75 करोड़ रुपये की जरूरत है। इसके चलते 96 कर्मचारियों के परिवारों को मुआवजे के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा।कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच राज्य में पंचायत चुनाव आलोचना का शिकार हुए थे। इलाहबाद हाईकोर्ट ने भी अप्रैल में चुनाव को स्थगित कराने के लिए दाखिल हुई जनहित याचिका पर विचार नहीं किया था।चुनाव हाईकोर्ट की तरफ से दिए हुए आदेशानुसार अप्रैल और मई में ही हुए।