कर्नाटक विधानसभा चुनाव (karnataka assembly election) के नतीजे केवल प्रदेश व दक्षिण भारत ही नहीं, बल्कि पूरे देश की चुनावी राजनीति के लिए दूरगामी असर डालने वाले होंगे। इनका प्रभाव इस साल के आखिर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) पर भी पड़ेगा। हिमाचल (Himachal) की हार के बाद भाजपा (BJP) बेहद सतर्क है। उसने मजबूत चुनावी प्रबंधन के लिए विभिन्न राज्यों के चुनिंदा नेताओं को भी जिम्मेदारी सौंपी है।
कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए इस बार नए नेतृत्व के साथ कड़ी चुनौती है। करीब दो दशकों से पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के इर्द-गिर्द रही भाजपा अब मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में चुनाव मैदान में हैं। येदियुरप्पा अब चुनाव लड़ने की राजनीति से दूर हैं। हालांकि, वह चुनाव लड़ाने की कमान संभाले हुए हैं। ऐसे में वह कितने प्रभावी होंगे, यह आने वाले समय में ही साफ होगा। वैसे येदियुरप्पा को प्रभावी लिंगायत समुदाय का समर्थन मिलता रहा है और बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं।
पूरे दक्षिण भारत में कर्नाटक ही ऐसा राज्य हैं, जहां भाजपा मजबूत है और सत्ता में भी है। भाजपा यहां सत्ता बरकरार रखकर दक्षिण भारत में अपना गढ़ कायम रखने में जुटी है। हालांकि, यहां के नतीजे इससे भी आगे की रणनीति को प्रभावित करेंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस भी कर्नाटक जीतकर इस साल के आखिर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मजबूत दावेदार बनने की कोशिश में है। साथ ही वह लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेतृत्व के लिए भी खुद को तैयार करेगी।
भाजपा के लिए कर्नाटक की जीत उसकी दक्षिण में मजबूती को बढ़ाएगी और आने वाले विधानसभा चुनावों व लोकसभा के लिए भी रणनीति को मजबूती देगी। इससे वह विपक्षी एकता की संभावनाओं को भी कमजोर करने की कोशिश करेगी। दरअसल, भाजपा को बीते छह महीने में गुजरात में भारी विजय के साथ पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव में भी खासी सफलता मिली है। मगर, हिमाचल में कांग्रेस के साथ कड़े मुकाबले में वह सत्ता गंवाकर रिवाज बदलने में कामयाब नहीं हो सकी। कर्नाटक में भी उसी तरह के कड़े मुकाबले की संभावना है। ऐेसे में भाजपा पूरी ताकत झोंककर सत्ता बरकरार रखने की कोशिश में है।
गुजरात फार्मूले पर बूथ प्रबंधन
भाजपा ने कर्नाटक में बेहतर प्रबंधन के लिए विभिन्न राज्यों के प्रमुख कार्यकर्ताओं को लगाया है। इनमें गुजरात के भी कार्यकर्ता हैं। गुजरात में भाजपा ने इस बार अपने बेहतर प्रबंधन से रिकार्डतोड़ जीत हासिल की है। गुजरात की तरह यहां पर भी बूथ को मजबूत करने के लिए पन्ना कमेटियों पर काम किया जा रहा है। मोटे तौर पर एक पन्ना पर लगभग 60 मतदाता और आठ से 12 परिवार होते हैं। ऐसे में हर पन्ने के लिए बनने वाली कमेटी में प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को शामिल करने की कोशिश है। माना जा रहा है कि भाजपा 70 फीसदी से ज्यादा बूथों पर ऐसी कमेटियां तैयार करेगी।