हाईकोर्ट में जज (Judge in High Court) के लिए पांच वकीलों (five lawyers repeat names) के नाम दोहराने और उनके बारे में आईबी-रॉ की रिपोर्ट (IB-RAW report) का खुलासा करने के बाद सरकार और कॉलेजियम (Government and Collegium) के बीच खींचतान बढ़ गई है। ये वे नाम हैं जिन्हें सरकार ने आपत्तियां जताते हुए वापस भेज दिया था। इनमें एक वकील सौरभ किरपाल का नाम पांच साल पुराना है।
बंबई हाईकोर्ट के एस सुंदरसन, मद्रास हाईकोर्ट के आर जॉन सथ्यन और कोलकाता हाईकोर्ट के अमितेष बनर्जी और शक्य सेन के नाम भी कॉलेजियम ने दोबारा भेजे हैं। सरकार का कहना है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रशासनिक है। यह कोर्ट का आदेश नहीं है, जिसके विरुद्ध कुछ नहीं कहा जा सकता। सरकार का इशारा यह है कि नाम दोहराने भर से वह उन्हें मंजूर करने के लिए बाध्य नहीं है।
सेकंड जजेज केस (1993) में दिए फैसले में कहा गया है कि यदि कॉलेजियम नाम दोहराती है तो सरकार को उसे मंजूर करना होगा। हालांकि, यह फैसला भर है, जिससे नियुक्ति की व्यवस्था कॉलेजियम बनी है। नियुक्ति का मामला हमेशा प्रशासनिक होता है। इस पर की गई टिप्पणियां कोर्ट की अवमानना के दायरे में नहीं आती हैं। इसका मतलब यह है कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को दोहराने की बात को ज्यादा महत्व नहीं दे रही है। नामों को दोहराए हुए 10 दिन हो चुके हैं।
जज नियुक्ति में सरकार का दखल लोकतंत्र के लिए घातक: नरीमन
नाम दोहराने और उन्हें सरकार द्वारा मंजूर न करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को तत्काल एक बड़ी बेंच का गठन करना चाहिए। दोहराव के मामले पर व्यवस्था देनी चाहिए कि यदि कॉलेजियम अपनी बुद्धिमत्ता में नामों को दोहराता है तो सरकार को उन्हें मंजूर करना ही होगा। इसके लिए कोर्ट को जल्द एक समय सीमा तय करनी चाहिए। इस मुद्दे पर स्पष्टता बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति में सरकार का दखल होना देश को अंधेरे ही ओर ले जाना होगा। सरकार कॉलेजियम की सिफारिश पर बैठ जाती है और कॉलेजियम के बदलने का इंतजार करती है, यह लोकतंत्र के लिए घातक है। मौजूदा कॉलेजियम के दो सदस्य जस्टिस कौल और जोसेफ क्रमश: दिसंबर और जून 2023 में सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जबकि मुख्य न्यायाधीश नवंबर 2024 तक पद पर रहेंगे।
कॉलेजियम ने इन वकीलों पर आपत्तियों को खारिज कर नामों को दोहराया है।
किस नाम पर क्या है आपत्ति
किरपाल: समलैंगिक होना और उनके पार्टनर का स्विस मूल का होना।
आर जॉन सथ्यन: प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लिखे लेख को सोशल मीडिया पर शेयर करना।
अमितेष: जस्टिस यूसी बनर्जी का बेटा होना, जिन्होंने गोधरा ट्रेन कांड में जांच कर षड्यंत्र न होने की रिपोर्ट दी थी।
शक्य सेन : इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के पुत्र, जिन्होंने शरदा चिट फंड घोटाले में जांच की थी
एस सुंदरसन : कोर्ट में लंबित महत्वपूर्ण मामलों पर सोशल मीडिया पर टिप्पणियां की थीं।