भारत एक ऐसा देश है, जहां पर करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. इनमें से कुछ भगवान लोगों के लिए खास हैं, जिन्हें वो सबसे ज्यादा मानते हैं. ऐसे में बजरंगबली लोगों के लिए संकट हरने वाले सबसे बड़े भगवान माने जाते हैं. देश में सबसे ज्यादा पूजा भी लोग भगवान हनुमान की ही करते हैं. हर संकट स्थिति में लोग हनुमान को ही याद करते हैं. कहा जाता है कि भगवान बजरंगबली अमर हैं. जिन्हें आज तक कोई नहीं मार पाया. कहा ये भी जाता है कि लोगों की मांगी हुई मुराद भी वो बहुत जल्द ही पूरी देते हैं.
हालांकि आपको ये बात जानकार हैरानी हो सकती है कि एक ऐसा भी गांव है, जहां पर आज भी भगवान हनुमान को नहीं पूजा जाता. यहां तक कि इस गांव में बजरंगबली का नाम लेना भी वर्जित माना गया है. इसका सबसे बड़ा कारण महिलाएं मानी जाती हैं. दरअसल ये गांव उत्तराखंड के चमोली में बसा है. जहां पर आपको न भगवान हनुमान की एक भी मूर्ति दिखेगी और न ही कोई उनका कभी नाम लेता हुए दिखाई देगा.यहां के लोग आज भी बजरंगबली से नफरत करते हैं, सदियों से चली आ रही ये परंपरा आज भी यहां के रहने वाले लोग निभाते हैं.
लक्ष्मण के लिए उखाड़कर ले गए थे पहाड़
दरअसल कथा के मुताबिक जब मेघनाद के द्वारा चलाए गए बाणों से लक्ष्मण जी घायल हो गए थे, तो उनकी जान बचाने का एक मात्र तरीका सिर्फ संजीवनी बूटी ही था. जिसके लिए भगवान हनुमान को चुना गया था. उस समय वैद्य जी ने हनुमान से कहा था कि हिमालय से जाकर वो संजीवनी बूटी लेकर आएं.ऐसे में हनुमान जी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित द्रोणागिरि पर्वत पर पहुंचे. लेकिन जब उन्हें संजीवनी बूटी का अंदाजा नहीं लगा तो वो पूरा पहाड़ ही उखाड़कर ले गए. यही वजह है कि आज भी यहां के स्थानीय लोग हनुमान जी से नाराज हैं और उनकी पूजा नहीं करते हैं.
इसलिए नहीं की जाती हनुमान जी की पूजा
हनुमान जी की यही गलती है कि आज भी गांव के लोग न उनकी पूजा करते हैं और न ही कोई उनका इस गांव में नाम लेता है. लेकिन हर साल यहां के द्रोणागिरी पर्वत को जरूर पूजा जाता है. लेकिन इस पूजा में महिलाओं को दंडवश की वजह से नहीं शामिल होने दिया जाता. क्योंकि कहा जाता है कि भगवान हनुमान को उस पर्वत का मार्ग दिखाने वाली एक महिला ही थी, जिसने उन्हें ये बताया था कि संजीवनी बूटी पर्वत के किस हिस्से में उगती थी.हालांकि महिला के बताने के बावजूद भी जब बजरंगबली उस बूटी को नहीं ढूंढ़ पाए थे, तो वो पूरा पर्वत ही उठाकर ले गए. यही कारण है कि यदि यहां पर कभी कोई हनुमान जी की पूजा करने की हिम्मत जुटाता भी है तो उसे समाज से हमेशा के लिए बेदखल कर दिया जाता है.