दुनियाभर में कोरोना वायरस (Corona Virus) के मामले अब भले ही पहले से कम हो गए हों, लेकिन पूरी तरह से कोरोना के केस खत्म नहीं हुए हैं. इस बीच भारतीय सेना (Army) ने अपनी डॉग स्क्वाडर्न को कोरोना संक्रमण की पहचान के लिए तैयार किया है. सेना ने देसी कुत्तों को कोरोना का पता लगाने के लिए तैयार किया है. खबर के मुताबिक चिप्पिपराई नस्ल के कुत्तों (Dogs) को कोरोना का पता लगाने के लिए ट्रेनिंग (Training) दी गई है. जया, कैस्पर और मणि भारत के पहले सैन्य कुत्ते हैं, जिन्हें संक्रमण का पता लगाने के लिए तैयार किया जा रहा है. ये कुत्ते कोरोना फ्रंटलाइन टीम की मदद संक्रमण का पता लगाने के लिए करेंगे.
इस कुत्तों (Dogs) को सेना इस तरह की खास ट्रेनिंग दे रही है, जिससे लोगों को मूत्र और पसीने के नमूनों के आधार पर कोरोनावायरस का पता लगाया जा सके. कैस्पर एक कॉकर स्पैनियल नस्ल (Spaniel) का कुत्ता है, जया और मणि तमिलनाडु के स्वदेशी चिपिपाराय नस्ल के हैं, जिनका शरीर और पैर काफी लंबे हैं. भारतीय सेना ने कहा कि जया और कैस्पर को पूरी तरह से ट्रेनिंग (Training) दी जा चुकी है, वहीं मणि को अभी भी ट्रेनिंग दी जा रही है. उन्होंने बताया कि जया और कैस्पर को दिल्ली के एक ट्रांजिक कैंप में तैनात किया गया था, जहां उन्होंने 806 नमूनों की जांच की. जिनमें से 18 नमूने कोरोना पॉजिटिव पाए गए. जो भी संपल कोरोना पॉजिटिव होते हैं, ये कुत्ते चुपचाप उनके पास जाकर बैठ जाते है.
ट्रांजिक कैंपों में तैनात किए जाएंगे कुत्ते
भारतीय सेना फिलहाल 7 और कुत्तों को ट्रेनिंग दे रही है. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद इन कुत्तों को दूसरे इलाकों में ट्रांजिक कैंपों में तैनात किया जाएगा. सेना ने यह भी कहा कि उसने कैंसर, मलेरिया और पार्किंसंस जैसी बीमारियों के लिए मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स का उपयोग करने के लिए वैश्विक रुझानों को देखते हुए कैनाइन को ट्रेनिंग दी है. बयान में कहा गया है कि अनुमान के मुताबिक कोरोना संक्रमण के लिए जिन कुत्तों को ट्रेनिंग दी गई है, उनमें संक्रमण को पहचानने की क्षमता है, वह बीमारी का तुरंत और वास्तविक समय का पता लगाने में मदद कर सकते हैं.
कुत्तों को नहीं होगा संकर्मण का खतरा
मेरठ में आरवीसी केंद्र के ट्रेनर लेफ्टिनेंट कर्नल सुरिंदर सैनी ने कहा कि दुनिया भर में मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स प्रचलन में हैं. कई देश कैंसर, मलेरिया, मधुमेह जैसे रोगों का पता लगाने के लिए कुत्तों की मदद लेते हैं. इस बात पर भी रिसर्च चल रही ह कि ये कुत्ते क्या बीमारी के वास्तविक समय का पता लगाने में मदद कर सकते हैं. सैनी ने कहा है कि सैपल्स पूरी तरह से सुरक्षित हैं. उन्होंने बताया कि कुत्तों को जो सैंपल सुंघाए जाते हैं, वो पहले अल्ट्रा वायलेट लाइट से होकर गिजरते हैं, जिससे उनकी सतह पर वायरस खत्म हो जाए. उन्होंने कहा कि जब कुत्ते इन सैंपल्स को सूंघते हैं, तो उन्हें संक्रमण का खतरा नहीं रहता है.
फ्रांस, जर्मनी, यूएई, ब्रिटेन, रूस, फिनलैंड, लेबनान, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बेल्जियम और चिली जैसे कई देशों ने भी कोरोना का पता लगाने के लिए कुत्तों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है, खासकर हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की स्क्रीनिंग करने के लिए इन कुत्तों को तैनात किया जाएगा.