भोपाल: शायद ही आपने सुना हो कि किसी पेड़ की सुरक्षा में 24 घंटे सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहते हैं. किसी वीआईपी व्यक्ति की तरह ही इस पेड़ की सुरक्षा की जाती है. इसका पत्ता भी टूटकर गिरता है तो प्रशासन की टेंशन बढ़ जाती है. खास बात यह भी है कि इस पेड़ का किसी वीआईपी इंसान की तरह मेडिकल चेकअप भी किया जाता है. मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के सांची स्तूप के पास एक पहाड़ी पर मौजूद ये पेड़ अपने आप में अनोखा है.
सामान्य तौर पर लोग इसे पीपल का पेड़ मानते हैं, लेकन इसकी कड़ी सुरक्षा को देख उनके दिमाग में यह प्रश्र जरूर उठता है कि इस पेड़ की इतना खास क्यों हैं? 15 फीट ऊंची जालियों से घिरा और आस-पास खड़े पुलिस के जवानों को देख यह पेड़ किसी वीवीआईपी की तरह ही लगता है. इसकी इतनी सुरक्षा और उसके स्वास्थ्य का ख्याल जब सरकार रखती है तो लोग इसे वीवीआईपी पेड़ कहने लगे हैं. मध्य प्रदेश सरकार ने इस पेड़ के लिए खास सुरक्षा व्यवस्था भी कर रखी है. इसकी देख-रेख उद्यानिकी विभाग, राजस्व, पुलिस और सांची नगरपरिषद मिलकर करते हैं. ये सभी विभाग इस बोधि वृक्ष का ध्यान रखने के लिए हमेशा अलर्ट मोड में रहते हैं. यही वजह है कि यहां जवानों की तैनाती भी की गई है.
इस पेड़ की सुरक्षा में हर साल करीब 12 से 15 लाख का खर्चा आता है. इसकी सुरक्षा में 24 घंटे गार्ड तैनात रहते हैं. पेड़ को पानी देने के लिये विशेष तौर पर स्थानीय प्रशासन का टैंकर आता है. पेड़ किसी तरह की बीमारी का शिकार न हो जाए. इसके लिए वक्त-वक्त पर कृषि अधिकारी भी यहां का दौरा करते रहते हैं.
भगवान बुद्ध से जुड़ा है पेड़ का कनेक्शन
आप सोच रहे होंगे कि पीपल के इस पेड़ में ऐसी क्या बात है जो इसके लिए इतने खास इंतजाम किये गये हैं? दरअसल, ये साधारण पीपल नहीं बल्कि उस बोधि वृक्ष के परिवार का हिस्सा है जिसके नीचे बैठकर महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था. यह बोधिवृक्ष 21 सितंबर 2012 को तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने खुद रोपित किया था. इस पेड़ को रोपने के लिए राजपक्षे उस पेड़ की शाखा लाए थे, जो बोध गया के बोधिवृक्ष की शाखा से लंका में रोपा गया था. यही वजह है कि ये पेड़ देश के सबसे वीआईपी पेड़ों में शुमार हो गया.
सांची स्तूप और इस पेड़ का कनेक्शन
इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पता चलता है कि रायसेन जिले में मौजूद सांची स्तूप को मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने बनवाया था. इसके पीछे एक खास उद्देश्य था. उन्होंने भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि देते हुए ये स्तूप बनवाने शुरु किये थे. साथ ही इसमें भगवान बुद्ध से जुड़ी वस्तुओं के अवशेषों को सहेजकर भी रखा गया था. श्रृद्धांजलि स्वरूप इन स्तूपों पर की गई नक्काशी में बौद्ध धर्म के महापुरुषों की जीवन यात्रा को दर्शाया गया है. इन स्तूपों को एक अर्धगोल गुंबद के रूप में बनाया गया है, जो धरती पर स्वर्ग की गुंबद का प्रतीक भी मानी जाती है. यह स्थल विश्व भर में प्रसिद्ध है और बौद्ध धर्म के अनुयायियों का आस्था का केंद्र माना जाता है. यही वजह है कि भगवान बुद्ध की यादों को संजोय इस पेड़ की विशेष सुरक्षा की जाती है.