यूपी (UP) में बहुत जोर से ये चर्चा सोशल मीडिया में चली कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) को नेता विरोधी दल घोषित कर दिया है. हालांकि पलभर में ही ये समझ आ गया कि खबर झूठी है, क्योंकि अभी तक सपा विधायकों की बैठक ही नहीं हुई है तो किसी को नेता प्रतिपक्ष (opposition leader) कैसे चुना जा सकता है. हालांकि ये सवाल तो खड़ा है ही कि आखिर सपा की ओर से किसे नेता प्रतिपक्ष बनाया जायेगा. सत्रहवीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे राम गोविन्द चौधरी बलिया की बांसडीह सीट से हार गये हैं. ऐसे में पार्टी को नये चेहरे की तलाश करनी होगी.
इसके अलावा पार्टी के कई दिग्गज लीडर इस बार चुनाव जीतकर आये हैं. ऐसे में ये संकट और भी बड़ा हो गया है. तो आइए जानते हैं कि सपा से कौन नेता प्रतिपक्ष बनने की काबिलियत रखता है. बता दें कि नेता विरोधी दल उसी को बनाया जायेगा जिससे एक खास राजनीतिक मैसेज जाये. इसे कई मानकों पर तौला जायेगा. मसलन दलित वोट बैंक का जुड़ाव, पिछड़े वोट बैंक का जुड़ाव, भाजपा की नीतियों का प्रखर आलोचक और पार्टी से वफादारी.
1. राम अचल राजभर
अम्बेडकरनगर से जीते राम अचल राजभर सीनियर लीडर हैं. वैसे तो हैं पुराने बसपाई, लेकिन समाजवादी पार्टी में आस्था दिखाई और जीत भी गये. पिछड़ों की गोलबन्दी के काम आ सकते हैं. कमी यही है कि वह सपा का पुराना काडर नहीं बल्कि बसपा से आयातित हैं.
2. लालजी वर्मा
इनकी कहानी भी राम अचल राजभर जैसी ही है. अंतर बस इतना है कि ये पार्टी से निकाले जाने से पहले विधानसभा में बसपा विधानमण्डल दल के नेता थे. यानी विधानसभा में पार्टी के अगुआ. कमी यही है कि ये भी पुराने बसपाई है, लेकिन पिछड़ों की गोलबन्दी के काम आ सकते हैं.
3. इन्द्रजीत सरोज
कौशाम्बी की मंझनपुर सीट से जीते इन्द्रजीत सरोज सूबे के बड़े दलित लीडर रहे हैं. वैसे तो ये भी पुराने बसपाई हैं, लेकिन चुनाव से बहुत पहले (चार साल पहले) ही सपा में आ गये थे. मायावती के बिखरते कुनबे को सपा की ओर मोड़ने में सहायक हो सकते हैं. प्रखर वक्ता भी हैं और फायर ब्राण्ड भी. राम गोविन्द चौधरी के तीखे तेवरों की कमी पूरी हो सकती है.
4. ओम प्रकाश सिंह
पुराने समाजवादी लीडर हैं. गाजीपुर की जमानियां सीट से विधायक बने हैं. वैसे तो हैं मुलायम सिंह के समय के, लेकिन अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. छात्र आंदोलन से ओम प्रकाश सिंह की राजनीति शुरू हुई थी और जयप्रकाश नारायण के संघर्ष में भी शामिल रहे. जमीनी नेता हैं. कमी ये है कि ठाकुर बिरादरी से हैं जिसका सूबे में कोई बड़ा वोट बैंक नहीं है. इसके अलावा अखिलेश यादव के साथ वैसी केमिस्ट्री नहीं है जैसी मुलायम सिंह के साथ रही है.
5. रविदास मेहरोत्रा
लखनऊ मध्य सीट से जीते रविदास मेहरोत्रा भी नेता विरोधी दल की रेस में आगे दिख रहे हैं. कड़े तेवर और संघर्षों वाले नेता रहे हैं. कोरोना काल में भाजपा सरकार को जमकर घेर चुके हैं. नेता विरोधी दल बने तो भाजपा सरकार की घेरेबन्दी तगड़े से कर सकेंगे.
वैसे माता प्रसाद पांडेय, जय प्रकाश अंचल और अवधेश प्रसाद जैसे लीडर भी जीतकर आये हैं. मुस्लिम बिरादरी से भी शाहिद मंजूर, फरीद महफूज़ किदवई और महबूब अली जैसे सीनियर लीडर भी जीतकर आये हैं, लेकिन इनकी संभावना ना के ही बराबर है. सॉफ्ट हिन्दुत्व वाली सपा ऐसा करने से बचेगी. बता दें कि विधानसभा में नेता विरोधी दल की बहुत हैसियत होती है. उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा रहता है. कैबिनेट मंत्री की ही तरह उसे सारी सुविधायें भी मुहैया होती हैं.