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Karwa Chauth 2021: इस तरह रहें करवा चौथ का व्रत और पूजा के दौरान जरूर पढ़ें ये कथा

सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा पर्व करवाचौथ आने में कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं. आने वाली 24 तारीख को रविवार के दिन करवाचौथ (Karwa Chauth 2021) का त्योहार मनाया जाएगा. इस दिन अधिकतर महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं. शाम के समय चंद्रमा निकलने के बाद वे चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और पति का तिलक आदि करने के बाद पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं.

लेकिन आजकल कामकाजी होने की वजह से दोहरी जिम्मेदारी के बीच फंस जाती है. ऐसे में वे करवाचौथ वाले दिन निराहार व्रत की बजाय फ्रूट्स वगैरह ले लेती हैं. यदि आप पहली बार करवाचौथ का व्रत रखने जा रही हैं, तो इसकी सही विधि को जान लें, ताकि इस व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके.

ऐसे रहें व्रत

सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर महादेव और माता पार्वती के समक्ष व्रत का संकल्प लें. संकल्प के दौरान आप अपना नाम लेकर कहें कि मैं पति की लंबी आयु व सुरक्षा और अखंड सौभाग्य की, अक्षय संपत्ति की प्राप्ति के लिए आज करवा चौथ का व्रत करूंगी. आप व्रत निराहार रहेंगी फलाहार के साथ रहेंगी या निर्जला, ये भी बोलें. इसके बाद संकल्प में कही बात का व्रत में पालन करें. बेहतर होगा कि आप व्रत निर्जला रहें. शाम को पूजन के समय चंद्रमा, शिव, पार्वती की स्वामी कार्तिकेय और गणेश भगवान के साथ वाली तस्वीर रखकर षोडशोपचार विधि से विधिवत पूजा करें. एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां, कंघी, बिंदी और रुपए रखकर इसे अपनी सास या उम्र में किसी बड़ी सुहागिन महिला को दें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें. रात में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य दें. आरती उतारें और अपने पति को भी छलनी से देखें और फिर उनकी पूजा करके पैर छूएं. इसके बाद पति के हाथों से जल पीएं और इसके बाद व्रत का पारण करें.

पूजा के दौरान इस कथा को जरूर पढ़ें

–  पौराणिक कथा के अनुसार,  इंद्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी. इकलौती बेटी होने के कारण वो सभी की लाडली थी. जब वीरावती शादी के लायक हो गई, तो उसके पिता ने उसकी शादी एक ब्राह्मण युवक से कर दी.

–  शादी के बाद वीरावती अपने मायके आयी हुई थी, तभी करवा चौथ का व्रत पड़ा. वीरावती अपने माता-पिता और भाइयों के घर पर ही थी. उसने पहली बार पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा. लेकिन वो भूख प्यास बर्दाश्त नहीं कर पाई और मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी.

–  बहन का कष्ट उसके सात भाइयों से देखा नहीं गया. ऐसे में उन्होंने छलनी में एक दीपक रखकर उसे पेड़ की आड़ से दिखाया और बेहोश हुई वीरावती जब जागी तो उसे बताया कि चंद्रोदय हो गया है. छत पर जाकर चांद के दर्शन कर ले. वीरावती ने चंद्र दर्शन कर पूजा पाठ किया और भोजन करने के लिए बैठ गई.

–  पहले कौर में बाल आया, दूसरे में छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने सुसराल वालों से निमंत्रण मिला. ससुराल के निमंत्रण पाकर वीरावती एकदम से ससुराल की ओर भागी और वहां जाकर उसने अपने पति को मृत पाया. पति की हालत देखकर वो व्याकुल होकर रोने लगी. उसकी हालत देखकर इंद्र देवता की पत्नी देवी इंद्राणी उसे सांत्वना देने पहुंची और उसे उसकी भूल का अहसास दिलाया. साथ ही करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल आने वाली चौथ के व्रत करने की सलाह दी. वीरावती ने ऐसा ही किया और व्रत के पुण्य से उसके पति को पुन: जीवनदान मिल गया.