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Diwali 2021 : दिवाली की रात धन की देवी लक्ष्‍मी और शुभ-लाभ के देवता गणपति की सबसे सरल पूजा विधि

दीपावली सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली धन की देवी मां लक्ष्मी और सभी बाधाओं को दूर करके अष्ट-सिद्धि प्रदान करने वाले भगवान गणेश की विशेष पूजा का महापर्व है. मान्यता है कि दिवाली की रात गणेश-लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने पर सभी आर्थिक दिक्कतें दूर होती हैं और पूरे साल धन-धान्य से घर भरा रहता है. आइए आज गणेश-लक्ष्मी की पूजा करने की सबसे आसान विधि जानते हैं.

सबसे पहले पूजन से जुड़ी सभी सामग्री अपने पास रख लें ताकि पूजा के समय बार-बार उठकर कहीं जाना न पड़े। सबसे अहम बात यह भी कि पूजा के समय परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठें और भक्ति-भाव के साथ दीपावली की पूजा प्रारंभ करें।

कलश को लक्ष्मी जी के पास चावलों पर रखें. नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें. यह कलश वरुण का प्रतीक है. अब दो बड़े दीपक रखें. एक में घी भरें व दूसरे में तेल. एक दीपक चौकी के दांयी ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में. इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेश जी के पास रखें.

पूजा में सबसे पहले एक साफ चौकी पर लाल और पीला कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ स्थापित करें। मूर्ति का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में रखा जाता है. प्रयास करें कि पूर्व दिशा की ओर ही मूर्ति का मुख रहे। लक्ष्मी जी की मूर्ति को हमेशा गणेश जी के दाहिनी या फिर कहें जब आप सामने से देखें तो गणपति के बाईं ओर होना चाहिए।

इसके बाद एक कलश को लक्ष्मी जी की मूर्ति के पास अक्षत के ऊपर रखें और इसके मुख पर एक नारियल को लाल कपड़े में ऐसे लपेटकर रखें कि इसका आगे का भाग दिखाई देता रहे। चूंकि कलश वरुण देवता का प्रतीक होता है, इसलिए कलश के पास दो बड़े दीपक रखें, जिसमें एक घी का और दूसरा तेल का एक दीपक चौकी के दायीं ओर रखें और दूसरा मूर्ति के चरणों में. एक दीपक गणेश जी के पास जलाकर रखें.

गणेश लक्ष्मी की चौकी के सामने कलश की ओर एक छोटी चौकी रखकर उस पर लाल कपड़ा बिछाकर एक मुट्ठी चावल से नवग्रह का प्रतीक बना दें। इसी प्रकार गणेश जी की तरफ चावल से सोलह प्रतीक यानि षोडशमातृका बनाएं। इनके बीच में स्वस्तिक भी बना दें। यदि आप ये न कर पाएं तो आप नवग्रह और षोडशमातृका का ध्यान करें और अपनी पूजा संपन्न करने का आशीर्वाद मांग लें।

इसके बाद ‘ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा. यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचिः’ मन्त्र का जप करते हुए प्रतिमा के ऊपर जल छिड़क दें. इसके बाद पूजास्थल और अपने ऊपर जल छिड़ककर स्वयं को पवित्र करें।

इसके बाद पृथ्वी माता को प्रणाम करते हुए स्वयं की गलतियों के लिए क्षमा मांगे और ॐ केशवाय नमः। ॐ आधारशक्तये नमः। ॐ माधवाय नमः। मंत्र बोलते हुए आचमन करें।

इसके बाद पुष्प, जल एवं कुछ धन हाथ में लेकर सुख-समृद्धि और सौभागय की प्राप्ति के लिए की जाने वाली पूजा का संकल्प करें।

इसके बाद भगवान गणेश, फिर कलश देवता, नवग्रह और षोडश मातृकाओं का पूजन इन मंत्रों को बोलते हुए करें।
1. सबसे पहले जल छिड़ककर बोलें – ‘स्नानं समर्पयामि.’
2. मोली चढ़ाएं और बोलें – ‘वस्त्रं समर्पयामि’. गणपति को जनेऊ भी अर्पित करें।
3. रोली के छींटे देकर बोलें – ‘गन्धं समर्पयामि.’
4. अक्षत चढ़ाएँ और बोलें – ‘अक्षतान् समर्पयामि.’
5. धूप दिखाएँ और बोलें – ‘धूपम् आघ्रापयामि.’
6. दीपक दिखातते हुए बोलें – ‘दीपं दर्शयामि.’
7. गुड़ और मिठाई चढ़ाते हुए बोलें – ‘नैवेद्यं निवेदयामि.’
8. जल के छींटे दें और बोलें – ‘आचमनीयं समर्पयामि.’
9. पान चढ़ाएँ और बोलें – ‘ताम्बूलं समर्पयामि.’
10. सुपारी और मुद्रा चढ़ाएं और बोलें – ‘दक्षिणां समर्पयामि.’

इसके बाद धन की देवी माता लक्ष्मी का ध्यान करें और उनका आवाहन थोड़ा सा फूल और अक्षत लेकर मन में करें। इसके बाद उपर दिये गये मंत्रों के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें और लक्ष्मी माता से पूरे साल अपने घर में निवास करते हुए धन-धान्य और सभी प्रकार के सुखों को प्रदान करने के लिए प्रार्थना करें। साथ ही पूजा में हुई भूल-चूक के लिए माफी मांगे। यदि आपके कोई बीसा यंत्र, श्री यंत्र, कुबेर यंत्र, कनकधारा यंत्र, दक्षिणावर्त्त शंख आदि हो तो उसकी भी पूजा साथ ही साथ करें. सबसे अंत में गणेश-लक्ष्मी की आरती करें और प्रसाद का वितरण एवं ग्रहण करें।