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देवबंद : 116 साल की आयु में ब्रह्मलीन हुए स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती, अपने आश्रम में ही आज किए गए समाधिस्त

रिर्पोट :- सुरेंद्र सिंघल/गौरव सिंघल, वरिष्ठ पत्रकार, सहारनपुर मंडल।
देवबंद। श्रीमद स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती 116 साल की आयु में ब्रहमलीन हो गए।  उनको देवबंद में देवीकुंड के निकट स्थित श्मशान भूमि के बाहर उनके द्वारा स्थापित महाकालेश्वर आश्रम में उनके कक्ष के सामने शुक्रवार 11 बजे समाधि दी गई। देशभर में फैले उनके लाखों अनुयायियों और हजारों निकटस्थ लोगों को गहरा आघात लगा। बिहार के मूल निवासी ब्रहमानंद सरस्वती जी 1982 से देवबंद को केंद्र बनाए हुए थे। वह राष्ट्र सेवा और हिंदू धर्म के शीर्षस्थ ध्वजावाहकों में से एक थे। भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति को समृद्ध करने उनका अप्रतिम योगदान रहा। गुरूवार रात 8 बजकर 10 मिनट पर स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती जी ने गाजियाबाद के हिलिंग ट्री अस्पताल में वेंटिलेटर पर आखिरी सांस ली।
उनके पार्थिव देह को रात्रि डेढ बजे उनके देवबंद स्थित आश्रम पर लाया गया। शुक्रवार प्रातः 11 बजे विधि-विधान के साथ स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती को उन्हीं के आश्रम में समाधि दी गई। प्रकांड विद्वान और स्वामी जी के अनन्य सहयोगी स्वामी दीपांकर जी महाराज और स्वामी शांतनु जी महाराज, 40 वर्षों तक उनके सहयोगी की भूमिका में रहे मुजफ्फरनगर के मोहन मित्तल, स्वामी नरसिंहानंद, हिंदू महासभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश त्यागी, आश्रम स्थित उनके सहयोगी विनोदानंद एवं विनोद सिंह आदि चंद करीबी लोग उपस्थित रहे। मोहन मित्तल के मुताबिक कई वर्षों से स्वामी जी अस्वस्थ चल रहे थे। लंबे समय से सांस लेने में दिक्कत के चलते वह कई माह से आक्सीजन पर रहकर अपने सहयोगियों और समर्थकों के बीच अपना योगदान दे रहे थे। पिछले ही माह जब वह कुछ समय के लिए देवबंद आश्रम पर आए थे तो मुजफ्फरनगर के कई बार विधायक रहे और सामाजिक कार्यकर्ता सोमांश प्रकाश और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सिंघल ने उनसे भेंट की थी। उसके बाद तबियत बिगडने पर वह फिर से गाजियाबाद चले गए थे।
जहां उनके शिष्य स्वामी दीपांकर महाराज उनका उपचार करा रहे थे। स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती के ब्रहमलीन होेने पर हरिद्वार स्थित जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी राज राजेश्वराश्रम, केंद्रीय मतस्य एवं पशुधन मंत्री गिरीराज सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय, सेवानिवृत्त पुलिस प्रमुख रामनारायण सिंह, पूर्व विधायक सोमांश प्रकाश, योगाचार्य डा. वरूणवीर, दिवंगत अरूण कुमार पानी बाबा की पत्नी पूर्णिमा सिंघल, वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सिंघल और गौरव सिंघल, रोहित कौशिक, अभिषेक त्यागी, मुकेश अग्रवाल, अमित सिंघल एडवोकेट, पूर्व सभासद उर्मिला सिंघल, शशांक जैन, मोहित आनंद, गजराज राणा, बिजेंद्र गुप्ता समेत अनेक प्रमुख हस्तियों ने फोन के जरिए अपनी विन्रम श्रद्धांजलि अर्पित की और उनको अपना नमन किया। इन सभी शख्सियतों का ब्रहमानंद सरस्वती जी के साथ निकट का संबंध था और वे देवबंद उनसे भेंट करने आते रहते थे।स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती वकालत की शिक्षा प्राप्त करने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे, प्रचारक रहे।
उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक रहे प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया एवं कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन और भाजपा की शीर्ष नेताओं में शामिल रही ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया और विश्व हिंदू परिषद के शीर्षस्थ नेताओं अशोक सिंघल, प्रवीन भाई तोगडिया के साथ करीबी संबंध रहा। मोहन मित्तल के मुताबिक स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री और विश्वू हिंदू परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय के साथ कई वर्षों तक रामजन्मभूमि आंदोलन में भागेदारी की। चंपत राय ने भी फोन के जरिए अपने पूर्व सहयोगी ब्रहमानंद जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती झारखंड प्रांत के जिला दुमका में बातुकीनाथ तीर्थ के तारापीठ के मठाधीश स्वामी अच्युतानंद सरस्वती के शिष्य थे। जिन्हें 1962 में चीन युद्ध की समाप्ति पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र गुरू की उपाधि दी थी। स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती तंत्र विद्या के भी मर्मग थे। वह किसी का अहित कभी नहीं सोचते थे। आधी आस्तीन का भगवा कुर्ता और भगवा लुंगी जो खादी की होती थी और हाथ में लाठी यह उनकी पहचान थी। उनके मांथे पर एक गढा बना हुआ था। यह भी उनकी विशिष्ठ पहचान में शामिल था। वह अनवरत हिंदू धर्म के उत्थान और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में चिंतनशील और पर्यत्नशील रहे।
अयोध्या से राम मंदिर ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय आज स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती को याद करते हुए बहुत भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि ब्रहमानंद जी का त्यागमय जीवन हमेशा उनके शिष्यों को प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने संयास धर्म का जीवन भर पालन किया। 100 वर्ष से भी ज्यादा की लंबी आयु पाने के दौरान उन्हें कभी निराश नहीं देखा गया। वह कभी किसी पर गुस्सा नहीं होते थे। ऐसे विलक्षण और पूज्य स्वामी के चरणों में मस्तक नमन कर वह आशा करते है कि ब्रहमलीन हो जाने के बावजूद उन पर उनकी पूर्ववत कृपा और आर्शीवाद बना रहेगा। सहारनपुर जिले में वर्ष 1983 में संघ प्रचारक के रूप में उनका स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती जी से जो संबंध बना वह उनके अंतिम समय तक प्रगाढ बना रहा। हरिद्वार में प्रचारक के रूप में वह स्वयं और स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती विहिप के तुलसीराम स्वामी हीरानंद और ओंकार भूषण गोस्वामी ने मिलकर हरिद्वार के साधु-संतों को राम मंदिर आंदोलन से जोडा और बिना संसाधनों के भी लंबा आंदोलन चलाया। हरिद्वार के सभी बडे महंत और महा मंडलेश्वर ब्रहमानंद सरस्वती का भारी सम्मान करते थे। पहली बार उन्होंने स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती के 1983 में दर्शन किए थे। स्वामी ब्रहमानंद सरस्वती विरक्त सन्यासी थे। उन्होंने कभी अपने रहने के लिए मठ, आश्रम आदि नहीं बनवाया। देवबंद में श्मशान भूमि पर वह एक कमरे में रहते थे। ब्रहमानंद सरस्वती लगातार उन्हें फोन करके इच्छा जताते थे कि उनके जीवित रहते मंदिर निर्माण हो जाए। स्वामी शांतनु जी महाराज के मुताबिक ब्रहमानंद सरस्वती को श्मशान भूमि पर लाने में देवबंद के भगत मुलखराज गंभीर की मुख्य भूमिका थी। संकट के समय में ब्रहमानंद सरस्वती जी सभी साधु-संतों को भरपूर सहयोग देेते थे और हर तरह से उन पर अपनी कृपा बरसाते थे।