अब उन लोगों को दिक्कत नहीं होगी जिनके लिवर खराब हो जाते हैं. वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में लिवर बनाने की तकनीक विकसित कर ली है. ब्राजील की साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ बायोसाइंसेस के ह्यूमन जीनोम एंड स्टेम सेल रिसर्च सेंटर (HUG-CELL) ने यह तकनीक विकसित की है. अब साइंटिस्ट लिवर का दोबारा निर्माण, मरम्मत और उत्पादन लैब में कर सकते हैं. वैज्ञानिकों ने चूहों के यकृत (Liver) को लैब में बनाया है. अब वैज्ञानिक इस तकनीक को और अत्याधुनिक व सटीक बनाकर इंसानों के लिवर का निर्माण करने की प्रक्रिया में जुट गए हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे लैब में लिवर बनाकर दुनिया की एक बड़ी समस्या का निदान करने में 100 फीसदी सफल होंगे. अगर यह सफलता मिलती है तो प्रयोगशालाओं में विकसित लिवर का प्रत्यारोपण (Transplantation) किया जा सकेगा.
लैब में विकसित चूहों के लिवर की स्टडी को मैटेरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग: सी (Materials Science and Engineering: C) में प्रकाशित किया गया है. इस स्टडी को करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक लुईज कार्लोज डी कैयर्स जूनियर ने कहा कि हम इंसानों के प्रत्यारोपित करने लायक लिवर का लैब में बड़े पैमाने पर उत्पादन करना चाहते हैं. लुईज ने कहा कि इससे उन लोगों को सबसे ज्यादा फायदा होगा जिन्हें लिवर ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त डोनर और कई तरह के मेडिको-लीगल मामले को लेकर इंतजार करना पड़ता है. हम इस समय इस बात के प्रयास में लगे हैं कि लैब में ऐसा लिवर बनाएं जो इंसान के शरीर के मुताबिक ढल जाए. उसे किसी इंसान का शरीर रिजेक्ट न करे.
लुईज ने कहा कि ऐसे लिवर बनाने के लिए डीसेल्यूलाइजरेशन (Decellularization) यानी बायोमेडिकल इंजीनियरिंग से एक्स्ट्रासेल्यूलर मैट्रिक्स को उतकों से अलग करना है. इसके बाद जिस मरीज के लिए लिवर बनाना है उसके मुताबिक रीसेल्यूलाइजरेशन (Recellularization) यानी एक्स्ट्रासेल्यूलर मैट्रिक्स को उपयुक्त बनाना है. लुईज ने बताया कि इस प्रक्रिया में हम लैब के अंदर इंसान के लिवर को विभिन्न प्रकार के मेडिकल डिटरजेंट और एंजाइम से धुलते हैं. इससे सारे एक्स्ट्रासेल्यूलर मैट्रिक्स अलग हो जाता है. लेकिन उसका आकार वैसा ही रहता है जैसा वह मरीज के शरीर में होना चाहिए. इसके बाद इस मैट्रिक्स को मरीज की कोशिका से मिलाया जाता है.
इससे फायदा ये होगा कि मरीज की कोशिका से मिलने के बाद मैट्रिक्स इंसान के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के अनुसार ढल जाता है. यानी जब प्रयोगशाला में बना लिवर किसी मरीज के शरीर में लगाया जाता है तो शरीर उसे आसानी से अपना लेती है. उसे रिजेक्ट नहीं करती. यानी आपके शरीर में लैब में बना लिवर जरूर लगता है लेकिन वह काम एकदम असली लिवर की तरह करता है. लुईज ने कहा कि अंग प्रत्यारोपण के लिए कई देशों में मेडिको-लीगल प्रक्रिया इतनी जटिल है कि मरीज को कई दिनों तक वेटिंग लिस्ट में रहना होता है. उपयुक्त लिवर का मिलना, लिवर डोनेट करने वाले और मरीज के परिजनों का आपसी तालमेल भी जरूरी होता है. साथ ही मरीज के शरीर में डोनर के लिवर का सामंजस्य भी जरूरी है. इन सभी प्रक्रियाओं का समय लैब का लिवर बचा देगा.